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________________ २०० परम ज्योति महावीर. तत्क्षण ही कारागारों से, सब बन्दी बन्धन मुक्त किये । पिंजड़ों से कोयल, तीतुर औ' तोता, मैना, उन्मुक्त किये ॥ ऋणियों पर जितना भी ऋण था, वह सब का सब भी त्याग दिया । औ' नहीं किसानों से मिलनेवाला भी कृषि का भाग लिया । दस दिन के लिये समस्त करोका लेना बन्द कराया था। बहुमूल्य पदार्थों का भी तो, अतिशय ही मूल्य घटाया था ।। इन सुविधाओं से लाभ हुवा-- सिद्धार्थ-राज्य में लाखों को । नृप की उदारता देख सफल, माना सबने निज आँखों को । हर याचक हेतु किमिच्छिक भी-- धनदान दिया सोल्लास गया । अाशा से बढ़कर पा लौटा, जो याचक उनके पास गया ॥
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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