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________________ थे। श्री श्योंप्रसादजी की जन्मभूमि टूण्डला ही है। इन्होंने 16 वर्ष की सुकुमार अवस्था में ही अपना उत्तरदायित्व सम्भाल लिया था। आपको आरम्भ काल से ही जमीन-जायदाद का बड़ा शौक रहा हैं, फलस्वरूप आपने इस दिशा में अच्छी प्रगति की है। आप इस क्षेत्र के प्रधान जमींदार माने जाते थे । धार्मिक मामलों में जहां आप उदार थे वहां पारस्परिक व्यवहार में भी निपुण थे । टूण्डला का 'दिगम्बर जैन महावीर विद्यालय' आपकी ही उदार वृत्ति का ज्वलन्त उदाहरण है। इस विद्यालय की विस्तृत भूमि आपकी ही दी हुई है । विद्यालय का वर्तमान भव्य स्वरूप आपकी ही कर्मठता का प्रतीक है। आप शिक्षा संस्थाओं को समाज के लिए अत्यन्त उपयोगी मानते थे । तथा आपने अपने जीवन में शिक्षा संस्थाओं का विशेष महत्व दिया है। श्री पी. डी. जैन इन्टर कालेज फिरोजाबाद के उपसभापति तथा ठा. वीर सिंह हायर सैकेण्डरी कॉलेज के आजीवन सदस्य एवं श्री दिगम्बर जैन एम.डी. कालेज आगरा के सदस्य इस प्रकार कई एक संस्थाओं के आप सम्माननीय सदस्य तथा पदाधिकारी रह चुके थे । आप अपने ग्रामीण स्वजाति बन्धुओं को नगरों तक ले जाना चाहते थे । अपनी इस भावना में स्वजाति जनों को उन्नत करने का विचार छिपा था । आप सदैव कहा करते थे कि स्वजातिबन्धुओं को अपनी 'अधवार' नगरों में भी बना लेनी चाहिए। आप अदालती कार्यों में भी निपुण थे । अदालत सम्बन्धी कार्यों में आपकी राय बड़े बड़े कानूनवेत्तओं के लिए भी महत्वपूर्ण मानी जाती थी । जिन विवादों का निपटारा बड़ी-बड़ी अदालतें न कर पाती थीं उनका निपटारा आप बात की बात में कर देते थे । अतः अनेकों मामलों में आपको पंच बनाया जाता था। आपकी सूझ-बूझ भी बड़ी ही अनूठी होती थी । एक रूप में आप सच्चे भविष्य द्रष्टा थे 1 पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 307
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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