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________________ प्रत्येक समय एवं स्थान पर धर्म साधा जा सकता है। आप वीरता, दया तथा निर्मलता की प्रतिमूर्ति थे। आप प्रत्येक व्यक्ति से अपने स्वजनों जैसा व्यवहार करते थे। आपकी भाषा अत्यन्त मधुर तथा विनोदपूर्ण थी। आप उच्च विचार युक्त आत्म-विश्वासी पुरुष थे। आप समय समय पर खुले दिल से दान-धर्म करते थे। कोटला में श्री मन्दिरजी को आपने अपनी जमीन देकर मन्दिर जी में सौ रुपया मासिक की स्थाई आय का प्रबन्ध कर दिया। अब वहां एक धर्मशाला भी बन गई __ आपका स्नेह एवं प्रेमपूर्ण व्यवहार अक्सर मानव को अपनी ओर आकर्षित कर लेता था। अभिमान आपको छू तक नहीं सका। आप स्पष्टवादी तथा उदारमना सुसंस्कृतज्ञ पुरुष थे। समय निकाल कर स्वधर्म-ग्रन्थों का बराबर अध्ययन करते रहते थे। आपका जीवन राष्ट्र का गौरव तथा स्वसमाज का आभूषण है। समाज के सर्वप्रिय विवेकी व्यक्तियों में आपकी गणना होती है। काफी समय पूर्व आपको स्वर्गवास हो चुका। आपके पुत्र श्री सुरेशचन्द जैन (नेमी) व श्री किशनचन्द जैन हैं। श्री सुरेश चन्द जैन का 1997 में स्वर्गवास हो गया। श्री सुरेशचन्द जी के तीन पुत्र हैं, ये पुत्र भी अपने दादा और पिता की तरह सक्रिय समाजसेवी हैं। इनके बड़े पुत्र का नाम राकेश जैन है। कैप्टिन साहब के दूसरे पुत्र श्री किशन चन्द जैन बम्बई में हैं, धार्मिक और सामाजिक क्षेत्र के साथ-साथ व्यापार में भी आपकी अच्छी स्थिति है। स्व. श्री श्योंप्रसाद जैन रईस, टूण्डला स्व. श्री श्योंप्रसाद जैन लाला तोताराम जैन के सुपुत्र थे। आपका परिवार जिला मैनपुरी के अन्तर्गत कुट्टी कटैना के मूल निवासी थे। स्व. श्री लाला तोताराम जैन अपने गांव से काफी समय पूर्व टूण्डला आ गए पद्यावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 306
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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