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________________ बनाएं। यह एक सच्चाई है कि आज के व्यस्त जीवन में व्यक्तिगत सम्पर्क (नियमित बैठकें) बहुत नहीं हो पाती। बिना सम्पर्क के एकजुटता और विचारधारा अथवा आयोजनों में एक रसता भी नहीं आ पाती। फोन अथवा पत्राचार से सम्पर्क फिर भी हो जाता है। अतः इस सम्पर्क के माध यम से भी संगठन को मजबूती और क्रियाशीलता प्राप्त हो सकती है। इस * संदर्भ में हमारे योग्य कोई सेवा हो तो पाठक हमें सूचित कर सकते हैं। पारस्परिक सहयोग और सद्भाव के वातावरण में पद्मावतीपुरवाल जाति के उत्थान के लिए सोच विचार कर किये गये संकल्प कल्पवृक्ष के समान हो सकते हैं। अतः उपरोक्त सभी बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए लगभग तीन वर्ष पूर्व निम्न उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए 'प्रगतिशील पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन संगठन' की स्थापना की गई :1. जातीय गौरव की रक्षा और भावी पीढ़ी के भविष्य निर्माण में सहायक बनने के लिए कुछ स्थायी महत्व के रचनात्मक कार्य करना। 2. उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले मेधावी छात्र-छात्राओं को छात्र-वृत्ति ___ अथवा प्रोत्साहन पुरस्कार देना। 3. विधवाओं, परितिक्त महिलाओं, पिछड़े एवं पीड़ित वृद्धों एवं उन पर आश्रितों के पालन पोषण में गोपनीय आधार पर आर्थिक सहायता देना अथवा अन्य माध्यमों से स्वावलम्बी बनाने का प्रयास करना। 4. उच्च शिक्षा प्राप्त और कार्यरत युवाओं और युवतियों के माध्यम से उच्च शिक्षा प्राप्त युवक युवतियों को समुचित स्थान पर सर्विस दिलाने अथवा उच्च शिक्षा के लिए मार्ग दर्शन हेतु अपनी निष्ठापूर्ण सेवाएं समर्पित करना। 5. अन्य कोई जनकल्याणकारी कार्य जो अधिक ग्राह्य और उपयोगी हो। पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 264
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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