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________________ दिल और पूर्ण विश्वास के साथ दान देकर पद्मावतीपुरवाल जाति को आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त किया। धर्मशाला की भूमिका बनने से लेकर धर्मशाला का निर्माण कार्य पूर्णता की ओर पहुंचने तक पू. आचार्य श्री सन्मतिसागरजी महाराज का भरपूर आशीर्वाद प्राप्त रहा है। दिल्ली पंचायत और गांधीनगर की समाज पूज्य आचार्यश्री की चरण वन्दना करती है । श्री पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन समाज शाहदरा क्षेत्र (पंजी.) गांधीनगर के 26-1-98 को हुए त्रिवार्षिक चुनाव में निर्वाचित हुए प्रमुख पदाधिकारी इस प्रकार हैं। श्री अतरचन्द्र जैन (चौधरी), डॉ. विजय कुमार जैन (अध्यक्ष), श्री सुमित प्रकाश जैन (वरिष्ठ उपाध्यक्ष), श्री महेशचन्द जैन (उपाध्यक्ष) श्री पुष्पेन्द्र कुमार जैन (मंत्री), श्री जगदीशप्रसाद जैन (उपमंत्री) श्री हरिबाबू जैन (कोषाध्यक्ष), श्री नवीन जैन रोहिणी ( प्रचारमंत्री), श्री इन्द्ररतन जैन (धर्मशाला प्रबन्धक), श्री एस. पी. जैन (लेखा निरीक्षक) । वर्तमान में यही कार्यकारिणी कार्य कर रही है । मूर्ति कहाँ सिकन्दर की राजधानी में एक सुन्दर बगीचा था। उसमें प्राचीन और वर्तमान पराक्रमी पुरुषों की मूर्तियां खड़ी की गई थी। एक बार सिकन्दर की राजधानी देखने कोई विदेशी अतिथि आया । सिकन्दर उसे अपना शाही बगीचा दिखाने के लिए अपने साथ ले गया। वहां रखी हुई मूर्तियों को देख कर अतिथि को काफी कौतूहल हुआ । उसने सिकन्दर से पूछा- 'ये किनकी मूर्तियां हैं?' सिकन्दर ने उनके बारे में बताया। सारी मूर्तियां देखने के बाद अतिथि ने कहा - 'महाराज ! आप की मूर्ति कहीं भी दिखाई नहीं दी ?" सिकन्दर ने जबाव दिया- 'मेरी मूर्ति यहां रखी जाए और अगली पीढ़ी यह प्रश्न करे कि ये मूर्ति किसकी है इसकी अपेक्षा मुझे यह अधिक अच्छा लगेगा कि मेरी मूर्ति रखी ही न जाए और लोग पूछें कि सिकन्दर की मूर्ति क्यों नहीं है?' पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 262
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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