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________________ लौकिक शिक्षा के रूप में ज्योतिष विशारद, आयुर्वेदाचार्य, होम्योपैथी (एम.बी.एच.डी.सी.एम.सी.) महाराष्ट्र सरकार, बम्बई से आर.एम.पी., बिहार से तथा पूना महाराष्ट्र से की। आपका जन्म भोपाल में हुआ। परम पूज्य आचार्य श्री 108 शान्निसागरजी महाराज के सम्पर्क से आपमें धार्मिक भावना जागृत हुई। पंडित शान्तिनाथ शास्त्री से धार्मिक शिक्षण शास्त्री स्तर प्राप्त किया। धार्मिक एवं सामाजिक गतिविधियां आप माणिक चन्द हीराचन्द जुबलीबाग ट्रस्ट, बम्बई के आठ वर्ष तक और जैन सिद्धांत संरक्षिणी सभा के 3 वर्ष तक उपदेशक रहकर सम्पूर्ण देश में भ्रमण कर धर्म चेतना जागृत की। आप ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवन बम्बई के भी दो वर्ष तक व्यवस्थापक रहे। नादगांव में चार वर्ष तक अध्यापन कार्य किया। आपको गुजराती, मराठी, हिन्दी, उर्दू और संस्कृत भाषाओं का ज्ञान था। आपने लगभग 63 पंचकल्याणक प्रतिष्ठाएं, 500 वेदी प्रतिष्ठाएं, 155 सिद्धचक्र विधान करवाकर जैन धर्म के ध्वज को कीर्तिमान रखा। ___समाज उत्थान हेतु आष्टा में दि. जैन सन्मार्ग समिति की स्थापना , जलगावं में महिला मंडल की स्थापना की। सन् 1969 से आपने स्वतंत्र व्यापार (प्रिंटिंग प्रेस) आष्टा में चलाया तथा विधान प्रतिष्ठा और कुण्डली रचना करते रहे। समाज द्वारा सम्मान-आपने विविध पंचकल्याणक प्रतिष्ठाओं की समयाविधि में आपको समाज द्वारा कई सम्मानित उपाधियां प्राप्त हुई। कवजाणा पंचायत द्वारा 'जैन रत्न' श्री देवेन्द्रकीर्ति महाराज द्वारा 'मंत्र प्रतिष्ठा विशारद, नादगांव समाज द्वारा ‘ज्योतिष विशारद' तथा 'वाणी भूषण तथा धर्म रत्न', वैद्य शास्त्री (कलकत्ता आयुर्वेद स्कूल) धर्म अनुष्ठान तिलक आदि उपाधियां प्रदान की गईं। पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास on
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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