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________________ प्रतिष्ठा एवं अन्य क्रियाकाण्ड भी करते थे। रइधू ने बाल मित्र कमलसिंह संघवी ने उन्हें बिम्ब प्रतिष्ठाकारक कहा है। गृहस्थ होने पर भी कवि प्रतिष्ठा का कार्य सम्पन्न करते थे। कवि के निवास स्थान के संबंध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता, पर ग्वालियर, उज्जयनी के उनके भौगोलिक वर्णन को देखने से यह अनुमान सहज में लगाया जा सकता है कि कवि की जन्मभूमि ग्वालियर के आसपास होनी चाहिए क्योंकि उसने ग्वालियर की राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थितियों का जैसा वर्णन किया है उससे नगरी के प्रति कवि का आकर्षण सिद्ध होता है। अतएव कवि का जन्म स्थान ग्वालियर के आसपास होना चाहिए। कवि के ग्रन्थों से पता चलता है कि वे ग्वालियर में नेमिनाथ और वर्धमान जिनालय में रहते थे। __ रइधू ने अपने गुरु के रूप में भट्टारक गुणकीर्ति, यशकीर्ति, श्रीपाल ब्रह्म, कमलकीर्ति, शुभचन्द्र और भट्टारक कुमरसेन का स्मरण किया है। इन भट्टारकों के आशीर्वाद और प्रेरणा से कवि ने विभिन्न कृतियों की रचना की है। स्थिति काल-विभिन्न रचनाओं, मूर्तिप्रतिष्ठाओं, गुरुओं के स्मरणादि, राजवंशों के शासन आदि के आधार पर रइधू का रचना काल वि.सं. 1457-1536 सिद्ध होता है। महाकवि रइधू ने अकेले ही विपुल परिमाण में ग्रन्थों की रचना की है। इसे महाकवि न कहकर एक पुस्तकालय रचियता कहा जा सकता है। विभिन्न स्रोतों के आधार पर अभी तक 37 रचनाएं खोजी गई हैं 1. मेहेसर चरिउ (आदिपुराण), 2. णेमिणाह चरिउ, 3. पासणाह चरिउ, 4. सम्मइजिन चरिउ, 5. तिसट्ठि महापुरिस चरिउ, 6. महापुराण, 7. बलहद चरिउ, 8. हरिवंश पुराण, 9. श्रीपाल चरित, 10. प्रद्युम्न चरित, 11. वृत्तसार, 12. कारण गुण षोडशी, 13. दशलक्षण जयमाला, पद्यावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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