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________________ पन्द्रहवीं शताब्दी के महाकवि अपभ्रंश भाषा के महाकवि रइधू के पिता का नाम हरिसिंह और पितामह का नाम संघपति देवराज था। इनकी मां का नाम विजयश्री था। अपने भाइयों में वे सबसे कनिष्ठ थे। बड़े भाइयों का नाम क्रमशः वाहोल एवं माहणसिंह था। रइधू काष्ठा संघ माथुरगच्छ की पुष्कर गणीय शाखा से संबंध थे। __ रइधू की धर्मपत्नी का नाम सावित्री था। उससे उदयराज नाम का एक पुत्र हुआ। जिस समय उदयराज का जन्म हुआ उस सयम कवि अपने 'रिट्ठणेमि चरिउ' की रचना में संलग्न था। रइधू पद्मावती पुरवाल वंश में उत्पन्न हुआ था। 'पोमावइ कुल कमल दिवाघरू' और कविवर उक्त पद्मावती कुलरूपी कमलों को विकसित करने वाले दिवाकर (सूर्य) थे जैसा कि ‘सम्मइ जिन चरिउ' के उपरोक्त वाक्य से प्रकट है। कविवर ने अपने कुल का परिचय 'पोमावइ कुल', 'पोमावइ पुरवाड वंस' जैसे वाक्यों द्वारा कराया है जिससे वे पद्मावती पुरवाल कुल में उत्पन्न हुए थे। कविवर रइधू प्रतिष्ठाचार्य थे। उन्होंने कई प्रतिष्ठायें कराई थीं। उनके द्वारा प्रतिष्ठित संवत् 1497 की आदिनाथ की मूर्ति का लेख भी है। यह प्रतिष्ठा उन्होंने गोपाचल दुर्ग में कराई थी। इसके अलावा संवत् 1510 और 1525 की प्रतिष्ठित मूर्तियां हैं। रइधू के ग्रन्थ प्रशस्तियों से पता चलता है कि हिसार, रोहतक, कुरुक्षेत्र, पानीपत, ग्वालियर, सोनीपत और योगिनीपुर आदि स्थानों के श्रावकों में उनकी अच्छी प्रतिष्ठा थी। वे ग्रन्थ रचना के साथ-साथ मूर्ति पद्यावतीपुरवाल दिमम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 77
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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