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________________ का शिखर जी में चातुर्मास हुआ था तब आपने गृहविरत ब्रह्मचर्य सप्तम प्रतिमा उनसे ले ली। तीर्थयात्रा की। पुनः संस्था की उन्नति में लगे। सन् 1956 में संस्था महावीर जी में आ गई। यहां संस्था को नये सहयोगी मिले। उनमें से एक ब्रह्मचारी पंडित संहिता सूरी सूरजमल भी हैं जो ब्रह्मचारी जी के एक मित्र हैं। ब्र. श्रीलालजी ने अनेक विद्या विहीनों को विद्या दी, अनेक आजीविका विहीनों को आजीविका दी और कई एक को आजीविका के योग्य बनाया। आपने अनेक जैन-अजैन छात्रों को मुक्तहस्त ज्ञानदान दिया। आपकी प्रेरणा से टेहू गांव में पार्श्वनाथ दि. जैन संस्कृत विद्यालय खोला गया। उसमे निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की गई। इस संस्था ने अनेक विद्वानों, श्रीमानों को जन्म दिया। ब्रह्मचारी जी की बड़ी भावना थी कि व्रतियों के लिए एक आश्रम खोलें व संस्कृत विश्वविद्यालय बने। ब्रह्मचारी जी ने निस्वार्थ भाव से गृहस्थ जीवन में रहते हुए जो कार्य किया वह स्मरणीय बना। एक कुर्ती व धोती से ही काम चलाने वाले, सात्विक वृत्ति वाले श्री लाल जी श्री (लक्ष्मी) के लाल ही थे। आप गुरुजी के रूप में प्रसिद्ध हो गये थे। ___ आपका बुत (स्टेच्यू) शांतिवीर नगर (महावीर जी) में लगने के लिए तैयार हो चुका है, किसी शुभ मुहूर्त में लगा दिया जायेगा। ब्रह्मचारी श्री सुरेन्द्रनाथ जी आपका जन्म फरुखाबाद में हुआ। कलकत्ता में व्यापार से निवृत होकर स्व. श्री गणेशप्रसाद जी वर्णी के उदासीन आश्रम में रहने लगे। वर्षों वहां के अधिष्ठाता रहे। आचार्य कुन्दकुन्द देव के आध्यात्मिक ग्रन्थों पर आपको अधिकारपूर्ण ज्ञान था। गहरी तत्व चर्चा में आपका वचन निर्णायक होता था। पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 76
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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