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________________ 82 / महामन्त्र णमोकार एक वैज्ञानिक अन्वेषण किया गया है । शब्दशक्ति और न्याय शास्त्र का भी सन्दर्भ देखा गया है। यह आलोडन यहा साकेतिक ही रहा है। ध्वनि के स्तर पर महामन्त्र की ऊर्जा को ठीक ढग से समझने के लिए एक पूरी पुस्तक भी कम होगी। सामान्य जीवन मे ही शब्द की ध्वनि जब परिचित और व्यवहृत अर्थ से हटकर केवल नादात्मक एव लयात्मक रूप धारण कर सगीत मे ढलती है अथवा कीर्तन मे ढलती है तब एक अद्भुत लोकोत्तर तन्मयता समस्त जड चेतन में व्याप्त हो जाती है। यह क्या है? यह केवल ध्वनि शब्द ब्रह्म का सहज रूप है। यह कार्य ध्वनि-लयात्मक सगीत से ही सम्भव है । बहु ध्वनि की एकतानता से समस्त जड़ चेतन मे एकतालता छा जाती है। अपने भौतिक शाब्दिक स्तर से उठता हुआ। संगीत-लयात्मक नाद जब आहत से अनाहत नाद की स्थिति में पहुचता है तब सहज ही आत्मा की निर्विकार सहज अवस्था से साक्षात्कार होता है। नमस्कार महामन्त्र का अथवा सामान्य मन्त्र का मुख्य प्रयोजन तो मानव को उसके मूल शुद्ध आत्म-स्वरूप की गरिमा की पहचान कराना है, परन्तु कुछ अन्य मन्त्र चमत्कार और सासारिकता मे ही उलझ कर रह जाते है। णमोकार मन्त्र महामन्त्र इसीलिए हैं। क्योकि वह सबका सामान्यत्व अपने साथ रहकर भी इससे बहुत ऊपर आत्मा के ज्योतिष्क लोक से अपना असली नाता रखता है। गुरु मन्त्र कौन देता है जो दिव्य कर्ण से युक्त होता है, गुरु हमे देखते ही हमारे आभामण्डल की गतिविधि को पहचान लेते है । वे समझ लेते हैं कि हमें किस शब्द मन्त्र की आवश्यकता है। वही शब्द गुरु देते है । वह शब्द हमारे शक्ति व्यूह को जगाने वाला होता है। उस शब्द के तन्मयता पूर्वक लगातार किये गये जप से हमारे अन्दर एक ध्वनिमलक रासायनिक परिवर्तन होता है। मन्त्र ही सूक्ष्म एव अतीन्द्रिय ध्वनिया पैदा कर सकता है। सामान्य शब्द या ध्वनि से वह काम नही हो सकता। वैज्ञानिको ने प्रयोग करके पता लगाया कि श्रव्य ध्वनि वह शक्ति नहीं रखती है जो शक्ति मानसिक ध्वनि में होती है। यदि श्रव्य ध्वनि के उच्चारण से एक प्याला पानी भी गरम करना हो तो लगातार डेढ सौ वर्ष लगेगे। तब जरूरत वाला व्यक्ति भी न रहेगा। इतनी ऊर्जा उच्चरित ध्वनि से डेढ़ सौ वर्षों में पैदा होती है। लेकिन वही शब्द या
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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