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________________ महामन्त्र णमोकार और ध्वनि विज्ञान | 79 । व-पीतवर्णी, कुडली आकार वाला, रोगहर्ता, तलतत्त्व युक्त, बाधा नाशक, सिद्धिदायक, अनुस्वाद के सहयोग से लौकिक कामनाओं का पूरक । ध्वनि के स्तर पर तालव्य । ज्झा-ध्वनि की दृष्टि से दोनों वर्ण चवर्गी हैं अत. तालव्य हैं। लाल वर्णी है, जल तत्त्व युक्त है, श्री बीजो के जनक हैं। नूतन कार्यों मे सिद्धि, आधि-व्याधि नाशक । या- श्यामवर्णी, चतुष्कोणात्मक आकृतियुक्त, वायुतत्ववान् तालव्य __ध्वनि-तरगयूक्त मित्र प्राप्ति मे सहायक-अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति मे सहयोगी हरित वर्ण । णं- मातृका की व्याख्या पहले ही की जा चुकी है। ___इस पद की अधिकाश मातृकाए तालव्य है। और अन्ततः मूर्धास्थानीय 'ण' ध्वनि तरग से जुडकर उसमें लीन होती है। उपाध्याय परमेष्ठी का वर्ण हरा है जो जीवन में ज्ञानात्मक हरीतिया और अभीष्ठ वस्तुओ को उपलब्ध करता है। मर्धा-अमृताशयी ध्वनि तरग को उत्पन्न करके समग्र जीवन का अमृत-कल्प बनाती है। भूमि, जल और वायु तत्त्व ही हरीतिया के मूल आधार है। इन तत्त्वों की इम पद में प्रमुखता है। ध्वन्यात्मक स्तर पर यह पद अत्यन्त शक्तिशाली है । मस्तिष्क की सक्रियता, शुद्धता और प्रखरता मे यह पद अनुपम है। णमो लोए सब्ब साहूणं : इस पद का अर्थ है लोक मे विद्यमान समस्त साधुओ को नमस्कार हो। यह परम अपरिग्रही और ससार त्याग के लिए कृतसंकल्प साधुओ का अर्थात् उनमे विद्यमान गुणों का नमन है । साधु पद से ही मुक्ति का द्वार खुलता है अत. इस गुणात्मक पद की वन्दना की गयी है। णमो' पद की व्याख्या आरम्भ मे ही हो चुकी है। लो- ल् +ओ=लो। वर्ण मातृका शक्ति के आधार पर 'ल' श्री
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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