SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 78 / महामन्त्र णमोकार . एक वैज्ञानिक अन्वेषण आ- यह वर्ण मातृका पूर्ववर्ती, कीर्तिस्फोटिका एव साठ योजन पर्यन्त आकारवती है। वायु तत्त्व के समान आस्फालित है, सूर्य ग्रहवती है। ध्वनि तरग के स्तर पर कंठस्था है। कठ ध्वनि में उक्त सभी गुण भास्वरित होते हैं। इ- कुडली सदृश आकार युक्त, पीतवर्णवती, सदा शक्तिमयी, अग्नि तत्त्व युक्त एव सूर्यग्रह धारिणी 'इ' वर्ण मातृका है। ध्वनि तरग के स्तर पर तालुस्थानवती है। रि- 'रि' मातका का विश्लेषण 'अरिहताणं' के साथ हो चुका है। इसी प्रकार 'आ' एव 'ण' मातृकाजी का भी विवेचन हो चुका है। यहा ध्यातव्य यह है कि 'रि' एवं 'णं' इन मर्धा-स्थानीय ध्वनियो के कारण अमत तत्त्व की प्रधानता हो जाती है। अत 'आ' तथा 'इ' कण्ठ्य एव तालव्य ध्वनिया अत्यधिक शक्तिशालिनी एव गुणधारिणी हो जाती है। आइरियाण पद की आहत ध्वनि स्तर पर एव अनाहत स्तर पर प्रखर महना है। अरिहन्त एव सिद्ध परमेष्ठी तो देव परमेष्ठी है। आचार्य परमेष्ठी गुण और भविष्यत् की संभावना से देव है, परन्तु व्यवहारत वे अभी ससारी ही है। आचार्य परमेष्ठी की प्रमुखता ससार में रहते हुए व्यवहारिक दृष्टि के साथ सभी को मोक्षमार्ग में प्रवृत्त करने की रहती है । व्यवहार और प्रयोगमय जीवन पर आचार्य परमेष्ठी का बल रहता है । ध्वनि के आधार पर भी यही तथ्य प्रकट होता है । णमो उवज्झायाणं : उ- उच्चाटन बीजो का मल, अदभत शक्तिशाली, पीत चम्पक वर्णी, चतुर्वर्ग-फलप्रद, भूमि तत्त्व युक्त, सूर्यग्रही। मातृका शक्ति के साथ-साथ उच्चारण के समय श्वास नलिका द्वारा जोर से धक्का देने पर मारक शक्ति का स्फोटक । उच्चारण ध्वनि तरग के आधार पर ओष्ठ ध्वनि युक्त।
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy