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________________ 68 / महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण असमर्थ हैं। शब्द जब स्थूल या अपर बनता है तो श्रव्य एवं ग्राह्य हो जाता है। ध्वनि की विषमता इस संसार की अशान्ति का कारण है। जहा ध्वनि की समरसता और एकतानता है वहाँ समता और शान्ति है। संगीत उसी का एक रूप है। ध्वनि तरंग ही विकसित होकर अक्षर का रूप धारण करती है। ध्वनि ही तत्त्वो से जुडकर एक आकृति मे ढलती है। यह आकृति ही अक्षरात्मक, लिपिपरक रूप धारण कर लेती है। आकृति और ध्वनि का सम्बन्ध छाया और धूप जैसा है। आकृति वास्तव में ध्वनि की छाया है। इन आकृतियों को जो आकाश में व्याप्त हैं, महात्माओ और ऋषियो ने देखा है। आशय यह है कि ध्वनि से आकृति और आकृति से अक्षर और अक्षर से शब्द तथा शब्द से वाक्य का क्रम रहा है। ध्वनि जब आकृति मे अवतरित होती है, तब कैसी होती है? आकृति और ध्वनि में अदभुत साम्य है। जैसा हम बोलते है वैसा ही लिखते हैं, और जैसा लिखते है, वैसा ही बोलते भी है। प्रत्येक पदार्थ आकृति से बधा है। आकृति का अर्थ है एक विशेष प्रकार का, रस, गध, वर्ण एव स्पर्श । ये सभी विशिष्ट आकृतिया किसी देवता से सम्बद्ध है। मन्त्रो के माध्यम से जब हम देव-चिन्तन करते है तो हमारी शक्ति बढती है। मनोबल बढ़ता है और देवताओ से हमारा साक्षात्कार होता है। ध्वनि उच्चारण से आकति का बोध होता है और आकृति से अक्षर का बोध होता है। हर अक्षर एक तत्त्व से बंधा है। चतुष्कोण से पृथ्वी तत्त्व का, षट्कोण से वायु तत्त्व का, चन्द्र लेखा मे जल तत्त्व का त्रिकोण से अग्नि तत्त्व का और वर्तुलाकार कोण से आकाश तत्त्व का बोध होता है। हमारे सभी सासारिक कार्य इन तत्त्वो से वधे हुए हैं। इन तत्त्वो की स्थिति या अनुपात बिगडते ही हम अनेक प्रकार की कठिनाइयों में पड़ जाते है, पृथ्वी तत्त्व की कमी होते ही शरीर मे रोग उत्पन्न होने लगते है। जल तत्त्व के बिगडते ही खून बिगडने लगता है। मन पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। मस्तिष्क के विकत होने से विचार भी बिगडते है। अग्नि तत्त्व बिगडने या कम होने से शरीर में उत्ताप होने लगता है। वायु तत्त्व के अस्त-व्यस्त होने से अनेक प्रकार के दर्द पैदा होने लगते है। आकाश तत्त्व बिगडता है तो मन विक्षब्ध होने
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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