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________________ महामन्त्र णमोकार और ध्वनि विज्ञान / 69 लगता है। दृढ इच्छा शक्ति टूट जाती है। इसी तत्त्व की सही साधना से मानव मे अनन्त ज्ञान, वैराग्य और आनन्द का सचार होता है। हमारे शरीर में जो हमारा मूल स्थान है जिसे हम ब्रह्म योनि या बडलिनी कहते हैं, उसी से ऊर्जा का प्रथम स्पन्दन होता है। यही स्पन्दन ध्वनि मे परिणत होता है।। णमोकार मन्त्र के प्रत्येक पद का प्रारम्भ णमो से हुआ है। णमो पद बोलकर हम अपने अहकार का विसर्जन करते हैं। 'ण' बोलते ही निर्ममत्व या नही का भाव जाग उठता है और 'मो' के उच्चरित होते ही पूरा अहकार टूट जाता है। निरहकारी व्यक्ति ही णमोकार मन के पाठ का अधिकारी है। 'ण' सीधा आकाश की ओर लगता है। वह नाभि से उठता है और आकाश की ओर चलता है। 'मोस्वाधिष्ठान में चलता है। इसके उच्चरित होते ही हमारे ओष्ठ जुड जाते है । ध्वनि निकलने की बहुत थोडी जगह ओठो के ठीक मध्य मे बचता है। 'ओ' अर्थोप्ठ ध्वनि है। स्पष्ट है कि 'णमो' पद का उच्चारण करते ही हमारी सासारिक-बोझिलता समाप्त होती है और हमारे मन में एक आत्मिक (ऊर्जा) (Energy) का प्रस्फुटन होने लगता है। 'ण' पिगला से सुषम्ना की ओर यावा है और मो के उच्चारण के साथ ही हम सुषुम्ना मे लय, हो जाते है। ध्वनि का दूसरा नाम है नाद । नाद दो प्रकार के होते हैं। मनुष्य के मस्तिष्क के अन्तिम शीर्ष से ऊर्जा प्रवेश करती है। वह सुषुम्ना में होती हुई ब्राह्मणी के द्वारा मूलाधार को प्रभावित करती है-आगे बढती है । मूलाधार से शब्द पैदा होते है। यही ध्वनि जब पिगला से जुडती है तो दूसरी ध्वनिया पैदा होती है। पिगला से जुडने पर या तो ह्रस्व स्वर (अ, इ, उ, ऋ,ल) या अनहत नाद' के अक्षर। __ स्वाधिष्ठान के नीचे जो अणकोष (दो) है उनके नीचे की जड से दो नाडियां जाती है । इनमे से दाहिनी और से निकलने वाली को पिगला और बाई ओर से निकलने वाली को इडा कहते है। इन दोनो का सम्बन्ध मूलाधार से जुडता है। यह होते ही ऊर्जा (Enkrgy) आने लगती है, एक प्रकम्पन होता है, त रग बनती है और सुषुम्ना में उतरती है और ध्वनियां उत्पन्न होने लगती है। कुछ ध्वनिया इडा से सम्बन्धित है और कुछ पिगला से । ध्वनियो का सम्बन्ध तत्त्वो से हो जाता है। तत्त्वों के बाद उन का सम्बन्ध अलग-अलग चक्रो से है। कुछ ध्वनियां
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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