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________________ महामन्त्र णमोकार और ध्वनि विज्ञान / 67 का एक ही मतलब है। वाक अग्नि से आता है, प्राण सूर्य से आता है और मन चन्द्रमा से। हमे समझना होगा कि ये तीनो हमारे भीतर कैसे पैदा होते हैं। मन से कैसे प्रकट होते है और फिर कैसे बाहर के विश्व में व्याप्त होते है। ___ मन्त्रों का प्रयोजन यही है कि आप बैखरी के द्वारा शब्द के मूल को पकड़ने के लिए गहरे उतरते चले जाए। प्रकाश के मूल स्रोत तक बढते जाएं-वहा तक कि जहां से मल करेण्ट का संचालन हुआ हैजन्म हुआ है। आप अन्त मे परा वाणी तक पहुंच जाए। जब आपका स्पन्दन (तेज, लय) पाराणसी तक पहुच जाएगा, तब सारे जगत् को परिवर्तित करने में आप परम समर्थ हो जाएगे, अर्थात सारी सासारिकता आपकी दासी हो जाएगी और आपमें एक लोकोत्तर आभामण्डल उदित होगा। मन्त्रोच्चारण मे स्पन्दनो की, लय और ताल की अनुरूपता का बहुत महत्त्व है। लय और नाल ठीक होने पर ज्ञान और भाव दोनो मे वृद्धि होगी। बैखरी जप का प्रभाव निरन्तर शक्ति और सामर्थ्य बढाता है, परन्तु इसका पूरा निर्वाह कठिन है। स्थूल देह के उच्चारणों की अपनी सीमा होती है। मानसिक जाप की महत्ता अद्भुत है। कुण्डलिनी के जागरण मे यही जाप कार्यकर होता है. पर चित्त की स्थिरता तो ऋषि, मुनि भी नही रख पाते। अतः बैखरी (उच्चारण प्रधान) जाप से बढते-बढते मानस जाप तक हमे पहुचने का सकल्प रखना चाहिए। इस कार्य मे जल्दवाजी अच्छी नहीं होती। ___ध्वनि पर भाषावैज्ञानिक, भौतिक एव श्रावणिक स्तरो पर विचार किया जा चका है। ध्वनि के स्फोटवाद और शब्दब्रह्मवादी सिद्धान्त का भी अनुशीलन हो चुका है। ध्वनि के शक्तिरूप और आध्यात्मिकरूप पर भी संक्षेप में विचार करना वाछनीय है। इससे णमोकार मन्त्र की ध्वन्यात्मक शक्ति को समझने में सुविधा होगी।। ध्वनि इस जगत् का मूल है, ध्वनि के बिना इस जगत् को पहचाना नही जा सकता। जगत् के पंच तत्त्व, समस्त पदार्थ आदि ध्वनि में गभित है। प्रत्येक परमाणु में जगत् व्यापी ध्वन्यात्मक विद्युत्कण हैं, बस उनका आकार सिमट गया है। हर कण में, लहर, लम्बाई, चचलता और विक्षोभ है। हम इस सब को अपने कानों से सुनने में
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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