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________________ रुपसुंदरी. AnnnnAmAA roamand व्रत लीधुं छे तो भले ग्रहण कर, हेनी आडे आववानी म्हारी बिल्कुल इच्छा नथी, पण फक्त एकज वखत म्हारी इच्छा-" हेना आ लंपटपणा माटे रुपसुंदरीने वधारेज तिरस्कार थवाथी ते रहेनुं बोलवू पण पुरुं न थवा देतां वचमांज बोली: "देवदत्त, रहने जे कहेवानुं हतुं ते में पहेलाथीज स्पष्ट रीते कही दीधेलं होवाथी तुं फरी पोताना तेज नफ्फटपणानी बडबड चलावी रह्यो छे, तेने शु कहीए ! रहने हवे म्हारे छेवट- एकज कहे, एज छे के, तुं फरीथी एक अक्षर पण न बोलतां अहींथी चालतो था." "ओ भूमि उपरनी अप्सरा आ दीन दासने आवी रीते दूर करीश नहीं" खुशामतना मात्र थोडा शब्दोथी तेणीना उपर असर थाय छे के नहीं ते जोवा माटे बोल्यो. "रुपसुंदरी! रुपसुंदरी ! ! हारा सौंदर्यथी रतिने पण लजावनारी सुस्वरुपी रूपसुंदरी ! अगाउीज वांकी बनेली हारी भमरीओ हजु पण वधारे वांकी करीश नहीं : अने अष्टमीना चंद्र जेवा हारा मनोहर ललाटपर विशोभित हवे वधारे पसरावीश नहीं ! खचीत नील कमळनुं सौंदर्य हरण करनारा हारा आ रमणीय नेत्रने आ हृदयभेदक करनारा तीव्रतर कटाक्ष अने कमळगर्भ जेवा नाजुक देहने आ प्रस्तरतुल्य निष्ठुर हृदय बिल्कुल शोभतुं नथी ! तेज प्रमाणे निरंतर अमृतरस वहेवडावनार हारा ओष्ठ ते हारी कालकूटस्वरुप वाणीथी
SR No.010133
Book TitleMahavir Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Hirachand Gandhi
PublisherMotilal Hirachand Gandhi
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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