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________________ ३४ दिगंबर जैन.. " परंतु हें म्हने जे वचन आप्युं छे हेर्नु शु?" . "तेनो शं विचार होय ! ते पोताना विचारमाथी मुद्दल काढी नांखवो एटले थयु. नीच कार्य बाबत अजाणपणाथी आपेलं वचन ते कार्यनुं हलकापणुं जणाई आव्या पछी पाळq एटलेज महत् पापं गणाय, ए वात तुं हवे बिल्कुल वीसरी जा!" "हा; तेम पण करीश, परंतु फक्त एक शते उपर " देवदत्त घगाज शांतपणे बोल्यो. " ते कई शर्त ? " रुपसुंदरीए उत्सुकताथी पूछ्युं. " हारा मधुर प्रेमनो म्हने एकवार पण स्वाद मळे तेज. " " हं ! आवा अभद्र शब्द फरीथी म्हारी पास बोलीश पण नहीं. त्हारा जेवा नीच माणसने हवे पछी म्हारा दर्शन पण नहीं थाय ते खूब ध्यानमा राखने !" “रुपसुंदरी ! आवी कठोर बनीश नहीं !" हेना हृदयना प्रेमनी नहीं, पण दयानी भावना जागृत करवाने पण पोतानो इष्ट हेतु पार पडे छे के नहीं ते जोवाना उद्देशे ते गळगळो थई बोल्यो. “ हारा सिवाय म्हारी शी स्थिति थई छ हेनी कल्पना पण हने नहीं होय, परन्तु हुं खचित कहुं छु के आ बे दिवसमां जमण अने निद्रानी पण म्हने खबर नथी, भने हजु पण तुं पोतानी हठ जो आवीज राखीश तो एक तरुणनी हत्यानुं पाप निःसंशय त्हारा उपर बेसशे. त्हें शील
SR No.010133
Book TitleMahavir Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Hirachand Gandhi
PublisherMotilal Hirachand Gandhi
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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