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________________ दिगंबर जैन. बहार आववा देवाथी केवा नाखुश छे ते तरफ थोडं पण लक्ष आप. सुंदरी, अन्नछत्र राखनार दातार, काळे करी कृपण किंवा दरिद्री बने, तोपण हेनी वर्तणुक माखीओने पण उडवा न देवी एटले सुधी जाय, ए तो अशक्यज छे. हे म्हारा हृदयनिवासीनी देवी ! हुं रहने, पोतानुं सर्वस्व अर्पण करुं छं. आज मुधी कोई पण भक्ते पोताना आराधक देवताने शणगारेला नहीं होय, एवा प्रकारना सुवर्ण रत्नालंकारेज हुं हने शणगारीश, एटलुंज नहीं पण हारी प्रसन्नता माटे हुं पोताना प्राणनी बळी पण आपीश !" कोण जाणे हेर्नु आ बोलवू क्यां सुधी चालत, परंतु रुपसुंदरीने तो ते एकदम असह्य थवाथी ते मोटा गुस्साना आवेशमां आवी जई रहेने कहेवा लागी: देवदत्त ! अहींथी चालतो था! एक क्षण पण म्हारी समक्ष उभो रहीश नहीं ! नीच, हारा लंपटपणाथी, खुशामतथी, द्रव्यथी के दरदागीनानी लालचथी अगर पाजीपणार्थी हुं फरीन ते दुर्मार्गमां पडीश एम शुं रहने लागे छे ? हवे आ रुपसुंदरीने दुनियानी सर्व संपत्ति पोताना पातिव्रत्यरुपी हीरा आगळ काच प्रमाणे देखाय छे ! अने पातिव्रत्यनो हीरो हरण करवा एटले जगतना बधा हीरा-माणेकना ढग, जो कोईपण हेनी आगळ करे, तोपण व्हेने लात मारी फेंकी दईश!" आ वखते रुपसुंदरी पोताना विचारमा एटली तन्मय बनी हती के, पोतानी समक्ष खरेखर कोईए रत्ननो ढगलो कर्यो छ एम तेणीने लाग्युं; 'लात मारी फेंकी दईश' ए वाक्य उच्चारती क्लते स्वरेज जोरथी हाथ पसार्यों ! पण ते कोईपण
SR No.010133
Book TitleMahavir Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Hirachand Gandhi
PublisherMotilal Hirachand Gandhi
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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