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________________ कभी नहीं होता। जब भी इन पशु-पक्षियों को चोट लगने का या मरने का भय होता है वे छिप जाते हैं। वे अपने छोटे बच्चो को प्यार करते है और उनका पालन करते हैं। यदि कभी अपने बच्चो पर कोई खतरा देखते हैं तो अपनी जान पर खेल कर भी उनकी रक्षा करते हैं। फिर वे हर समय तो हिंसा नहीं करते। जब उनको भूख लगती है, या उन पर कोई आक्रमण करता है तभी वे हिंसा करने को उद्यत होते हैं। इसके विपरीत मनुष्य प्राकृतिक रूप से हिसक नही है। उसके अग-प्रत्यग, दात व आत हिसा करने व मासाहार के उपयुक्त नही हैं। मनुष्य मे ज्ञान व विवेक है। वह अपने लिये खाद्य उत्पन्न कर सकता है। पशु तो अनादि काल से जिस अवस्था में था उसी अवस्था मे है, परन्तु मनुष्य ने उत्तरोत्तर कितनी उन्नति की है। इसलिए मनुष्यो को और पशुओ को एक ही श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। ___एक बात और है। आप ससार मे किसी भी पशुपक्षी, कीट, पतग को देखे तो आप यही पायेंगे कि एक जाति के जीव अपना झुण्ड बना कर रहते हैं। कहीं भी किसी एक जाति के जीव को आप अकेले नही पायेंगे। एक अकेला जीव कभी जीवित नही रह सकता। सभी जीव परस्पर के सहयोग व उपकार से जीवित रहते हैं। और जहा पर जीवित रहने के लिए परस्पर सहयोग व उपकार की आवश्यकता है वहां पर ही अहिंसा होती है। क्या हिसा का अर्थ परस्पर सहयोग व उपकार है ? यदि नही तो फिर इन प्राणियो का प्राकृतिक धर्म हिसा कैसे हुआ? यही बात मनुष्य के सम्बन्ध में भी है। कोई भी व्यक्ति
SR No.010132
Book TitleMahavir aur Unki Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Radio and Electric Mart
PublisherPrem Radio and Electric Mart
Publication Year1974
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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