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________________ अकेले रह कर अपना जीवन व्यतीत नही कर सकता। उसको भी जीवित रहने के लिए परस्पर सहयोग व उपकार की आवश्यकता है। परन्तु एक बात में मनुष्य पशु से भी नीचे गिरा हुआ है। प्रत्येक पशु-पक्षी अपनी जाति के जीवों के साथ सदैव प्रेम भाव रखता है। वह अपनी 'जाति के जीवो पर बिना विशेष कारण के द्वेष व आक्रमण नहीं करता। परन्तु मनुष्य अपने स्वार्थ के वश प्रायः दूसरे मनुष्य की बुराई ही सोचता है। इसीलिए अनादि काल से ससार मे युद्ध होते रहे हैं, जिनमे मनुष्य एक दूसरे का रक्त बहाते रहे है। (६) कुछ व्यक्ति यह तर्क करते है कि यदि इन पशुपक्षियो का बध नहीं किया जायेगा तो इनकी संख्या इतनी बढ़ जायेगी कि मनुष्यो को ससार मे रहने के लिए स्थान पाना कठिन हो जायेगा और उनको भोजन के लिए खाद्य पदार्थ मिलने भी दुर्लभ हो जायेगे। इसलिए मनुष्य जाति की भलाई इसी में है कि इन पशु-पक्षियो का बध किया जाता रहे। जहा तक इन पशु-पक्षियो की संख्या में बढोतरी का प्रश्न है उससे मनुष्य को भय नही करना चाहिए। प्रकृति इनकी संख्या पर स्वय ही नियन्त्रण रखती है। सर्दी, गर्मी, सूखा, वर्षा आदि प्राकृतिक कारणो से इनकी संख्या सीमित रहती है। इसके अतिरिक्त जितने पशु-पक्षी हैं वे सभी विशेष विशेष ऋतुओ मे प्रजनन करते हैं । इस कारण भी इनकी संख्या सीमित रहती है। वास्तव में इन जीवो की संख्या बढ़ जाने का भय निराधार है और उनका बध करने का एक बहाना मात्र है। इसके विपरीत आज कल तो स्वय मनुष्य ही उनका मास प्राप्त करने के लिए कृत्रिम
SR No.010132
Book TitleMahavir aur Unki Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Radio and Electric Mart
PublisherPrem Radio and Electric Mart
Publication Year1974
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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