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________________ उनको अप्रिय लगने वाली ध्वनि करने से वे मुरझा भी जाते हैं । तात्पर्य यही है कि मनुष्यो मे और इन पशु-पक्षियो व वनस्पतियो मे समान चेतना होते हुए भी यही अन्तर है कि इन्द्रियो की शक्ति की अपेक्षा वे मनुष्य से निर्बल हैं और वे मनुष्य के समान अपने सुख-दुख को व्यक्त नही कर सकते । इसलिए पशु-पक्षियो व वनस्पति को अहिंसा के क्षेत्र से दूर रखना हमारे भ्रमपूर्ण दृष्टिकोण व निजी स्वार्थवृत्ति का ही परिचायक है। वास्तविकता तो यह है कि इस ससार मे जितने भी चेतन पदार्थ हैं चाहे वह वनस्पति हो चाहे सूक्ष्म कीट-पतग, चाहे पशु-पक्षी (मनुष्यो की तो बात ही क्या है) सभी हमारे अहिंसक व्यवहार के अधिकारी हैं । हिंसा के पक्ष में कुछ तर्क व उनका समाधान (१) कुछ व्यक्ति यह कहते है कि समस्त ससार मे असख्य स्थूल जीवो के अतिरिक्त असख्यात सूक्ष्म जीव भरे हुए हैं। हमारे दैनिक जीवन मे इनका घात होता ही रहता है । इसलिए पूर्ण अहिंसा का पालन करना असम्भव है, और जब अहिंसा का पालन करना असम्भव है तो अहिंसा पर इतना बल क्यों दिया जाये ? यह ठीक है कि किसी भी व्यक्ति द्वारा पूर्ण अहिंसा का पालन करना असम्भव है, परन्तु इसका अर्थ यह तो नही कि इसीलिए अनावश्यक हिंसा को भी प्रोत्साहन दिया जाये । हमारा कर्तव्य तो यह है कि हम जो भी कार्य करे बहुत सावधानी पूर्वक करे और इस बात का सदैव ध्यान रखे कि हमारे किसी भी कार्य से किसी भी जीव को किसी भी प्रकार का कष्ट न पहुँचे । हमारे हृदय जीव दया की ५६
SR No.010132
Book TitleMahavir aur Unki Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Radio and Electric Mart
PublisherPrem Radio and Electric Mart
Publication Year1974
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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