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________________ भावना से परिपूर्ण हो और हम यथा सम्भव अनावश्यक दौड़-धूप से बचते रहे । यदि हम इस प्रकार का व्यवहार करेगे तो हम बहुत सी अनावश्यक हिंसा से बच सकेंगे। जैन शास्त्रो के अनुसार प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने जीविकोपार्जन के लिए मनुष्यो को असि, मसि, कृषि, शिल्प, वाणिज्य आदि की शिक्षा दी थी। भगवान ऋषभदेव महान ज्ञानी थे। वे जानते थे कि शस्त्रो का प्रयोग करने से व कृषि, उद्योग आदि से हिंसा हो जाना अनिवार्य है। प्रश्न यह है कि फिर भी उन्होने ऐसे हिंसक कार्यों की शिक्षा क्यों दी? इसका उत्तर यही है कि उन्होने तत्कालीन समय की मांग को समझा था। उन्होने शस्त्रो का प्रयोग दूसरो को कष्ट देने के लिए नही, अपितु अपनी व अपने आश्रितो की रक्षा के लिए बतलाया था। कृषि की शिक्षा उन्होने इसलिए दी थी कि जिससे मनुष्य अन्न का उत्पादन करके अपना पेट भर सके । भगवान ऋषभदेव का उद्देश्य कृषि के द्वारा अनाज उत्पन्न करना था, न कि जीवो की हिंसा करना। उन्होने यही शिक्षा दी थी कि जो भी कार्य करो बहुत सावधानी पूर्वक और दया की भावना से करो। (२) कुछ व्यक्ति यह प्रश्न करते हैं कि यदि हम अहिंसा का पालन करेंगे तो हम आक्रमणकारी का सामना कैसे करेंगे ? अपराधी को दण्ड कैसे देगे? क्योकि ऐसा करने में हिंसा हो जाना अवश्यम्भावी है। ___ इसका उत्तर हम पहले भी दे चुके हैं । जो व्यक्ति गृहत्यागी साधु हैं, उनको तो किसी प्रकार का भी प्रतिकार करना ही नही है, चाहे उनको कोई कितना ही कष्ट दे। परन्तु जो व्यक्ति गृहस्थाश्रम का पालन कर रहे हैं उनका तो सर्वप्रथम कर्तव्य है कि वे आक्रमणकारी का यथाशक्ति
SR No.010132
Book TitleMahavir aur Unki Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Radio and Electric Mart
PublisherPrem Radio and Electric Mart
Publication Year1974
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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