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________________ मदरास व मैसूर प्रान्त। (१४) उच्छंगी दुर्गम-यह एक पहाडी किला ग्वालियरके किलेके समान है। किसीसमय (चौथी शताब्दी)में यह कादम्बवंशका मुख्य नगर था । पीछे यह नोलम्बपल्लव राजाओंकी राज्यधानी रहा । गंगमारसिंहने (सन् ९६३-९७३) नोलम्बोंसे ले लिया। ग्राममें जो शिलालेख हैं उनसे प्रगट है कि सन् १०६४ में यहां चालुक्यवंशी राजा त्रैलोक्यमल्ल तथा सन् ११६९ में पांडवविजय पांडवदेव राज्य करते थे। (१५) सन्दूर नगर-संदूर राज्य-होस्वत ला० के पास कुमारम्वामी मंदिरके गोपुरम्के सामने मंदिरके बाहर अगस्त्य तीर्थम् नाम सरोवरके चारों ओर कुछ छोटे मंदिर व खंडित मूर्तियां पड़ी हैं । इनमें से कुछ जैनोंकी हैं। (१६) हुलीविदु-में एक जैन मुनिकी मूर्ति पाषाणकी है जिसका फोटो मदरास एपिग्राफी दफ्तरमें है। नं० सी ९७ हैं। (१७) कोनवरचोडु ता० अल्लूर-यहां श्रीवर्द्धमान भगवा वानकी जैन मूर्ति है निप्तको लोग हिन्दू देवता मानकर पूजते हैं। वझं कनडीमें एक लेख है जिससे प्रगट है कि १२ वीं शताब्दीमें श्रीपद्मप्रभ मलधारी स्वामीके शिप्य राया महासेठीकी स्त्री चन्दव्वेने पुनः प्रतिष्ठा कराई थी। (१८) नंदिवेवरू-ता. हरपनहल्ली-यहां अंजनेय स्वामीके मंदिरके पस एक पाषाण है जिसमें लेख है कि शाका ९७६में जब त्रैलोक्यमल्ल नोलम्बपल्लव परमानदी नोलम्बवाड़ी ३२०००, वल्लकुन ३००, कोदम्बलि १००० पर राज्य करते थे तब रेचरुरुके १२० महाजनोंने जैन तीर्थंकरोंकी भक्तिके अर्थ बाग आदि देशी
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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