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________________ ५०] प्राचीन जैन स्मारक। गणके अष्टोपवासी मुनि वीरनंदि सिद्धांत देवके सामने भेट किये थे। (१९) कप-विजयनगर-कपके पटेलके पास एक ताम्रपत्र है निससे प्रगट है कि शाका १४७९में जब वीर प्रताप सदाशिवराय राज्य करते थे तब तम्मलरस उपनाम मद्दे हगड़े जो कपका सरदार था और उसके आधीन गणपम् सामन्तने कपके लोंगोंसे मिलकर श्री देवचन्द्रदेवकी आज्ञासे अपने गुरु मुनिचन्द्रदेवके आत्मलाभके हेतु मैरग्राममें भूमि दान किया। (२०) तारेणगल्ल-ता० होस्पत-यहां शंकर देवराज गुड्ड पर्वतपर तंगमनगुंडु नामकी चट्टानपर एक कनड़ीमें लेख है जिससे प्रगट है कि यहां श्री अकलंकदेयके शिप्य बयिची सेठकी निषिधिका (समाधिस्थान) है। (२१) मांगला-तुंगभद्रा नदीपर-हुविनहडहल्लीसे पश्चिम १० मील । यहां एक जैन मंदिर है । . (९) अनन्तपुर जिला । यहां ५५५७ वर्ग मील स्थान है। चौहद्दी है-उत्तरमें वेलारी और कुरनूल जिले, पश्चिनमें वेलारी और मैसूर, दक्षिणमें मैसूर, पूर्वमें कुड़ापा मिला। इतिहास-यहां इतिहाससे पहलेके मनुप्योंके मरणस्थान FE Ki tvzing ) सैकड़ों हैं जो मुदीगल्लुमें हैं। यह स्थान कल्याणदुगसे पूर्व ३ मील है तथा देवटुलवेट्टमें हैं। यह एक बड़ी पहाड़ी उसीके उत्तरमें है। कुछ ऐसे स्थान अनन्तपुर ता.में माल्पवंतम्मे उत्तर सड़ककी तरफ है । ८ वीं से १० शताब्दी तक
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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