SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मदरास व मैसूर प्रान्त । [२१ भाषा तेलुगू बोलते हैं। ये वास्तवमें प्राचीन तूरानी लोग हैं। इनके सम्बन्धमें विशम कोल्डवेल साहब कहते हैं कि आर्योंके भारतमें आनेके पहले इनकी सभ्यता बहुत उन्नति पर थी। वर्तमानमें जो उपजातियां हैं वे २५०० वर्षसे ही हो सक्ती हैं। यहां चीन यात्री हुइनसांग सन् ६४०में आया था। वह यहांके बौद्धोंके ध्वंश होनेपर शोक करता है । यहां बौद्धोंका नाश बहुत कुछ जैनोंने किया था फिर ब्राह्मणोंने भी किया क्योंकि हुइनसांगकी यात्राके पीछे ६०० वर्ष तक कृष्णा जिलेमें जैन लोग पाए जाते थे । धरणीकोटाके जैन रानाओंके नाम कई शिलालेखोंमें मिले हैं जिनमें से बहुत उपयोगी वह शिला लेख है जो गुंटूर तालुकेके यनमडल ग्रामकी गलीमें मिला है । लेखमें नीचे लिखे छः राजा ओंके नाम हैं । (१) कोट भीमराय । (२) कोट केतराय सन् ११८२, (३) कोट भीमराय द्वि०, (४) कोट केतराय हि०, सन् १२०९ । (१) कोट रुद्रराय । (६) कोट वेतराय । तृ. ____अंतिम राजा कोट वेतरायने वरंगलके राजा गनपतिदेव और रानी रुद्रम्माकी कन्या गनपनबाको विवाहा था। गनपतिदेवने सन् ११९०से १२५८ तक वरंगलमें राज्य किया। इसने वरंगलके चहुंओर पाषाणकी भीत बनवाई थी तव नगरका नाम था एक शिलानगरम् । यह राजा जैनियोंको कष्टदायक था। इसने इसी युक्तिसे अपनी कन्या जैन राजाको विवाही थी। इस कन्यासे जो प्रतापरुद्र पुत्र हुआ उसने माताका ब्राह्मण धर्म पाला । प्रतापरुद्रके समयमें जैनी यहांसे चले गए, मात्र ब्राह्मण रहगए। कहते हैं गनपतिदेवने जैनियोंको तेलके कोल्हुओंमें दबाकर मारा था।
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy