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________________ २४२] प्राचीन जैन स्मारक। माकी वचन रूपी किरणसे वृद्धिको प्राप्त हुई है ऐसा गुण रूपी रत्नोंका समुद्र चामुण्डराय राजा है। उसकी बुद्धि रूपी तरंग जगतमें विस्तारको प्राप्त होवे ।। 7 गोम्मटसंगहसुत्तं गोम्मट सिहरुबरि गोम्मटजिणो य । गोम्मटगय विणिम्मिय दविखग कुक्कुड जिणो जयउ ॥ ९६८ ॥ भावार्थ-गोम्मटसार संग्रहरूप सूत्र जयवंत हो ।तथा गोम्मट शिषरपर चामुंडराय राजासे निर्मापित जिनमंदिरमें विराजमान एक हाथ प्रमाण इंद्रनीलमय नेमिनाथ तीर्थकरका प्रतिबिम्ब सो जयवंत हो तथा चामुण्डराय राजाकत जगत्में प्रसिद्ध दक्षिण कुक्कुट जिनका प्रतिबिम्ब जयवंत हो जेण विणिम्मिय पडियावय गं सव्वद सिद्धि देवहिं । सव्वपरमोहिजोगिहिं दिदं सो गोम्मटो जयउ ॥९.७९।। भावार्थ-जिसके द्वारा निर्मापित जिन प्रतिमाका मुख (श्री गोम्मटस्वामी प्रतिमा) सर्वार्थसिद्धिके देवोंदरा व सर्वावधि परमावधिधारीयोगियोंके द्वारा देखा गया सो राजा चामुण्डगय जयवंत हो। वजयणं जिण भवन ईगिय भारं सुवण्णकलमं तु । तिहुवण पडिमाणिक जेण कयं जयउसो गओ ॥ ९.७० ॥ भावार्थ-जिसने ऐसा जिन मंदिर बनवाया जिसका पीठ बंध वज समान, व जिसका प्राग्भार ईषत् है व सुवर्णमई जिसके कलश हैं व तीन भुवनमें जो उपमा योग्य है सो राजा जयवंत हो। जेणुब्भियथं भुवरि मलक्खतिरीटम्ग किरणजलधोया। सिलाणसर पाया सो गओ गोम्मटो जयउ ॥९.७१॥ भावार्थ-जिसने मंदिरमें ऐसा स्तंभ बनवाया है उसपर यक्ष हैं उनके मुकुटकी किरणरूपी जलसे सिद्धोंके शुद्ध आत्मप्रदेश
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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