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________________ मदरास व मैसूर प्रान्त । [ २१७ मणि चामुंडराय था जो सिंहनंदिके शिष्य मुनि अजित सेनका और श्रीनेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्तीका शिष्य था । " राजावली कथा और मुनि वंशाभ्युदय काव्य कहते हैं कि इस बाहुबलिकी मूर्तिकी पूजा श्रीरामचंद्र, रावण और मन्दोदरीने की थी । लेख नं० २३४ (८५) सन् १९८० नं० २५४ (१०९) सन् १३९८, नं० १७५ (७६), १७६ (७६) और १७९ (७५) जो मूर्तिकी बगल में कनड़ी, तामील और मराठीमें अंकित हैं, बताते हैं कि इस मूर्तिका निर्माण च मुण्डरायने कराया था । (सं० नोटमाम होता है कि मूर्तिपर पहले से ही नकशा मात्र कोरा होगा, जिसको इस वर्तमान शकल में महाराज चामुण्डरायने बनवा कर प्रतिष्ठा कराई होगी ) । गंगवंशी राजा राचमलने सन् ९७४ से ९८४ तक राज्य किया । यह मूर्ति सन् ९८३ में प्रतिष्टित हुई इसीसे इसका वर्णन कनड़ी चामुण्डराय पुराणमें नहीं है जो सन् ९७८ में चामुण्डराय द्वारा रचा गया था । इस मूर्तिकी प्रतिष्ठा विभव संवत्सर चैत्र सुदी ५ को हुई थी ( See Indian Antiquary Vol, II of 1871 p. 129 ). सन् १८७१ में मस्तकाभिषेक किया गया था । राईस साहबने इस मूर्तिकी माप नीचे (१) नीचेसे कानों तक (२) कानोंके नीचेसे मस्तक तक (३) चरणकी लंबाई (४) चरणके आगेकी चौड़ाई प्रमाण दी है ५० फुट ० ६-६ ९ - ० ४-६ इंच
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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