SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७-० ५-३ २१८] प्राचीन जैन स्मारक । (५) बड़े पगके अंगूठेकी लंबाई २-९ (६) कमर और कोहनीसे कानतक (७) कंधोंके आरपार चौड़ाई २६-० (८) गर्दनके नीचेसे कानतक २-६ (९) पहली अंगुलीकी लंबाई ३-६ (१०) मध्यकी ,, ,, (११) तीसरी , " ४-७ (१२) चौथी , " २-८ कवि चक्रवर्ती शांतराज पंडितने संस्कृतमें सरसजन चिन्तामणि काव्य सन् १८२०में लिखा है उसमें दिये हुए १६ श्लोक मूर्तिकी माप सम्बंधी ताड़पत्रपर लिखे हुए मैसूरके अरननी जिन चंद्रय्याके घरमें मिले । इसके अतिम श्लोकमें यह है कि महाराज कृष्णराय ओडयर त ने श्री बाहुबलिस्वामीका मस्तकाभिषेक कराया था तब उनकी आज्ञासे कविने मूर्तिकी माप की थी। यह माप ५४ फुर ३ इंच आती है। माप सम्बन्धी श्लोक। जयति वेलगुल श्री गोमटेशोस्थ मृर्तेः । परिमिति मधुनाऽहम् वच्मि सर्वत्र हर्षात् । स्वसमयजनानाम् भावनादेशनार्थम् । परसमयजनानाम अद्भुतार्थ च साक्षात् ॥ १ ॥ पादान्मस्तकमध्यदेशचरमम् पादार्घयुन्मातु षट् । त्रिंशद्धस्तमितोच्छ्योस्ति हि यथा श्री दौर्बलिस्वामिनः ॥ १ ॥ पादा विंशति हस्तसनिभमिति म्पंतमस्त्युच्छ्यः । पादार्यान्वितषोड़शोच्छ्यभरो नामेस्थिरोंतम् तथा ॥ २ ॥
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy