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________________ मदरास व मैसूर प्रान्त । [१२३ हैं । कादम्ब राजाओंके समान होयसाल वल्लाल भी जैन थे ( Hysal Eallals like Kadamba chiefs were Jains by religion ) सन् १२५० मे वारकुरनगर जैन राना भूतलपांड्यके आधीन था। इसने अलियासंतान कानून जारी किया जिससे माताका धन पुत्रीको व मामाका धन बहनके पुत्रो जाता था। कारकलमें जो विशाल मूर्तिपर लेख है वह बताता है कि सन् १४३१ में इस वंशके जैन राजा वीरपांड्य राज्य करते थे। सिवाय उपाध्याय या पुनारी विभागके जैनियोंके ओर सब तुलुर देशके जैनी अलियासंतान कानूनको मानते हैं। जैन राजालोग वारकुर नगरमें सन् १९५० से १३३६ तक बहुत बलिष्ठ थे। वारकुरका पुराना किला राजा हरिदेवरायने बनाया था। मंगलोरमें जैन राजा वंगर कहलाते थे। ये रानालोग विजयनगरके राजाओंसे भी अधिक इतिहासमें प्रसिद्ध हैं जिनको यह मात्र कर देते थे। इक्वेरी या वेदनोरवंशके लोग मालावार जातिके गौड़ थे तथा शिवभक्त या लिंगायत थे और विजयनगरके कृष्णरानाके आधीन केलदी ग्रामके स्वामी थे। सन् १९६०के अनुमान इनमें से एकने सदाशिव रानाको प्रार्थना करके वारकुर और मंगलोरकी गवर्नरी प्राप्त करली और अपनी उपाधि सदाशिव नायक रक्खी। अब जैन राजाओंमें और इकरी वंशवालोंमें शत्रुता हो गई । जिस समय जैरसप्पा और भटकलके आधिपत्त्यको रखनेवाली जैन रानी भैरवदेवी राज्य करती थी और उसने बीजापुरके आदिलशाहकी आधीनता स्वीकार कर ली थी तब इक्केरीमें वेंकटप्पा नापक राज्य करते थे। यह बड़ा दृढ़ था।
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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