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________________ १२२ ] प्राचीन जैन स्मारक । कार कर लिया । जबसे कादम्बवंशी राजा मयूरवर्माने (सन् ७५० ) ब्राह्मणोंको स्थापित किया तबसे ब्राह्मणोंका प्रभाव प्रारम्भ हुआ उसके पहले जैनोंहीका प्रभाव दीर्घकालसे जमा हुआ था । क्योंकि गिरनारके राजा अशोक के शिलालेख में यह कहा गया है कि चोल, पांड्य और करेलपुर ताम्रपर्णी तक यह रीति प्रचलित थी कि बीमार मनुष्य और पशु दोनोंकी रक्षा की जाती थी । जो आज्ञा देवानाव प्रियदासी अशोककी थी उसका अमल हर जगह किया जाता था (सं० नोट- वास्तव में यह आज्ञा अशोककी उस समयकी थी जब वह जैनधर्मका माननेवाला था । इसीलिये जैन राजाओंने हरस्थान में इसका पूरा र पालन किया। आठवीं शताब्दी के मयूरवर्माने प्राचीन चालुक्योंको दबा दिया जो सन् १६० के पीछे बनवासीके प्राचीन कादम्बों के बाद राज्य कररहे थे और तुलुवा देशके स्वामी थे तथा मैसूर राज्य नगर जिलेके हूमसके जैन रामा पर भी आधिपत्य रखते थे । मयूरवर्मा चारित्र (मेकंजी साहबके संग्रहीत ग्रन्थों में है ) में कहा है कि यह राजा वल्लभीपुरमें पैदा हुआ था, यह ब्राह्मणों को अहिच्छत्रसे पश्चिमीय तट और वनवासी में लाया (सं० नोट- इस चारित्रको देखना चाहिये) । राजा जिनदत्त और उसके वंशजोंने जो हमसके जैन कादम्ब राजा थे पहले अपनी राज्यधानी उप्पिनन्गुडी तालुकाके सिसिला नगर में रक्खी थी पश्चात् उड़पी तालुका कार कलमें स्थापित की जहां भैरम्मूओडियर के नामसे वे चालुक्य व विजयनगरके राजाओंकी आधीनता में राज्य करते रहे । भैरलूओडियर के लेख १२वींसे १६वीं शताब्दी तकके मैसूर राज्यके कुदुमुखके उत्तर कलशमें पाए गए
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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