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________________ १२४ ] प्राचीन जैन स्मारक | इसने यह बात पसन्द न की और भैरवदेवीको युद्धमें हरा दिया और मार डाला तथा वारकरमें जैन प्रभावको नष्ट कर दिया । इसने मंगलोरके जैन राजाको भी दबाना चाहा परन्तु वहां वह सफल न हुआ । इटलीका यात्री डेलावल्ले Dallavaile भारत में आया था । इसने सन् १६२३ के अनुमान भारतके पूर्वीय तटकी मुलाकात ली थी । इसके लिखे पत्रोंसे मंगलोरके जैन राजा और इक्केरीके राजाके सम्बन्धका पता चलता है । यह यात्री उस एलचीके साथ गोआसे इक्केरीको होनासे और जैरसप्पा होकर गया था । यह यात्री जानता था कि वंगर जैन राजाने वेंकटप्पा नायककी कोई शर्त आधीनता स्वीकार करनेकी स्वीकार नहीं की। इस यात्रीने मनेलकी जैन राजकुमारीको चलते हुए देखा था, जब वह एक नई नहर के देखने के लिये गई थी जो उसने खुदवाई थी । सन् १६४६ में इकेरीके नायकोंने अपनी राज्यधानी इक्केरीसे २० मील वेदनोर में स्थापित की । यह स्थान कुन्दुपरको जाते हुए हसनगुडी घाट के ऊपर है । सन् १६४९ में शिखप्पा नायक स्वामी हुआ । इसने ४६ वर्ष राज्य किया । उस समय कारकल जैन वंशका अधिकार जाता रहा था परन्तु मंगलोर के बंगड़ जैन राजा बराबर दृढ़ता से राज्य करते रहे। इन बंगड़ राजाओं के वंशवाले अब नीचे प्रमाण पाए जाते हैं- नंदावर के बंगड़, मूलबिद्रीके चौटर, बलदलगुड़ी के अजलर, बैलनगड़ीके भुतार तथा विट्ठल हेगड़े | कारकलकी श्री बाहुबलिस्वामीकी जैनमूर्ति ४१ फुट ५ इंच ऊँची व इसका वजन ८० टन है । इस मूर्तिको राजा वीरपांड्यने सन् १४४२ में बनवाकर प्रतिष्ठा कराई थी । मूडबिद्रीका बड़ा
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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