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________________ मदरास व मैसूर प्रान्त । १९२६ को दुबारा की थी। यह पहाड़ी ३. फर्लाग ऊंची है। ऊपर नाकर एक शिलापर वृक्षके नीचे श्री कुंदकुंदआचार्यके चरणचिह्न हैं। ये दो वालिस्त लम्बे बहुत प्राचीन हैं। यह आचार्य वि०स० ४९में प्रसिद्ध हुए हैं। यह बड़े योगी व दार्शनिक थे। दिगंबर जैनी इनको महापूज्य मानते हैं। इनके ग्रन्थ श्री पंचास्तिकाय, श्री प्रवचनसार, श्री समयसार, श्री नियमसार, द्वादशभावना आदि बहुत प्रसिद्ध हैं व अध्यात्मरससे पूर्ण हैं। यहां स्वामीने तपस्या की थी, आसपासके ग्रामोंके भाई पूजनार्थ सदा आते रहते हैं। यहां आरानिवासी जमीदार धर्णेन्द्रदास जैन ब्रह्मचारीने नीचे एक आश्रमं व चैत्यालय बनवा दिया है । ध्यान करने के इच्छुक यहां निवास कर आत्मकल्याण कर सक्ते हैं। मदरास एपिग्राफीके दफ्तरमें कुछ चित्रादिनं० सी १४-करिकत्तरमें गणेश मंदिरके पास खेतमें एक जैन मूर्ति है। नं० सी १५-चन्द्रगिरिके राजमहलके सामने एक भैन मूर्ति है । नं० सी १००-वेंगुरम ग्राममें जैन मूर्ति । नं० सी १०१- " " नं० सी. १०२- " " नं० सी १०३-तिर्राकोलमें चट्टान मूर्ति सहित । __ (१३) सालम जिला। यहां ७५३० वर्गमील स्थान है । चौहद्दी है-उत्तरमें मैसूर व उत्तर अर्काट, पूर्वमें दक्षिण व उत्तर अर्काट और ट्रिचनापली, दक्षिणमें ट्रिचनापली और कोयम्बटूर, पश्चिममें कोयम्बटूर और मैसूर राज्य।
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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