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________________ ८० ] प्राचीन जैन स्मारक । इतिहास - प्राचीनकाल में उत्तर भागमें पछवोंने राज्य किया व दक्षिण भाग कोंगूराज्य में गर्भित था । नौमी शताब्दी में चोल राजाओंने कुल लेलिया । पीछे होयसालवंशी बल्लालोंने राज्य किया । । सन् ८१५ में यहां राष्ट्रकूट वंशी गोविंद तृ०का राज्य था । फिर उसके पुत्र अमोघवर्ष प्रथमने ६२ वर्षतक राज्य किया । यह धार्मिक स्वभावका था, जैन धर्मका पक्का भक्त व साहित्यका रक्षक था (He was religiously minded, a devout supporter of Jain faith and a great patron of literature). होयसालवंशी विष्णुवर्द्धनका मंत्री गंगराजा था । यह तीन बड़े जैनधर्मके रक्षकों में से एक था । वे तीन थे - चामुंडराय मंत्री मारसिंह, तलकाड गंग मंत्री विष्णु० और हुछा मंत्री होयसाल नरसिंह प्रथम | कुछ चोल राजाओंने जैन मंदिरोंको नष्ट किया व स्थानीय जैन धर्मका उल्लंघन किया । १४वीं शताब्दी में विजयनगरके राजाओं ने लेलिया । १७वीं शताब्दी में मदुराके नायक राजाओंने राज्य किया । मैसूरके राजाने १६५२ में कुछ भाग लेलिया फिर १६८८--९०में चिक्कदेवराजाने, जो मैसूर में बड़ा प्रतापी था कुल लेलिया । १७६१ में मुसल्मानोंने कबजा किया | मुख्य स्थान | (१) धर्मपुरी - ता० धर्मपुरी-मदराससे १७८ मील मदरास, कलिकट, ट्रंक सड़कपर। यह मोरप्पूर होसुर लाइट रेल्वेका स्टेशन है । यहां विष्णु और शिवमंदिरसे कुछ ही दूर सेठी अम्मनका मंदिर है तथा सड़क की तरफ दो जैन मूर्तियां एक उंचे पाषाण पर अंकित हैं जिनको लोग रामक्का और लक्ष्मणका कहते हैं । इस
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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