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________________ (सं.1410), विनयम उपाध्याय का गौतमरास (सं. 1412), सौमसुन्दरसूरि का भासयाराम (सं. 1450), जयसागर के बयरस्थामी पुरुरात और गौतमरास, होरपन्दरि वस्तुपाल तेवपाल रासादि (सं. 1486), सकलकीति (सं. 1443) के सोबहकारणरास पावि उस्लेखनीय हैं । ब्रह्मजिनदास (सं. 1445-1525) का रासा साहित्य कदापित सर्वाधिक है। उनमें रामसीतारास, यशोधररास, हनुमतसस (125 प) नामकुमारसस, परमहंसरास (1900 पद्य) अजितनाथ रास, होली रास (148 पंच) धर्मपरीक्षारास, ज्येष्ठजिनवर रास (120 पद्य), श्रोणिकरास, रामकितमिथ्यास्वरस (10 पब), 'सुदर्शनरास (337 पद्य), अम्बिका रास (158 पध), नागधीरास (23अपद्य), जम्बूस्वामी रास (10005 पडा), भद्रबहुरास, कर्मविपाक रास, सुकौसल स्वामी रास, रोहिणीस, सोलहकारणरास, दशलक्षणरास, अनन्तवतरास, कबूल रास, धन्यकुमारसस, चारुदत्त प्रबन्ध रास, पुष्पांजलि रास, धनपालरास (वानकथा सस), भविष्यदत्तरास, जीवंधररास, नेमीश्वररास, करकन्दुरास, सुभौमचक्रवर्तीरास और अम्मूमनुण रास प्रमुख है। इनकी भाषा गुजराती मिश्रित है। इन प्रन्यों की प्रतियां जयपुर, उदयपुर दिल्ली मादि के जनशास्त्र भण्डारों में उपलब्ध हैं । इनके अतिरिक्त मुनिसुन्दरसूरि का सुदर्शन श्रेष्ठिरास (सं. 1501), मुनि प्रतापचन्द का स्वप्नावलीरास (सं. 1500), सोमकीर्ति का यशोधररास (सं. 1526), संवेर सुन्दर उपाध्याय का सारसिखामनरास (सं. 1548), ज्ञानभूषण का पोसहरास (सं. 1558), यश-कीर्ति का नेमिनाथरास (स. 1558), ब्रह्मज्ञानसागर का हनुमंतरास (सं. 1630), मतिशेखर का धन्नारास (सं. 1514), विद्याभूषण का भविष्यदत्तरास (सं. 1600), उदयसेन का जीवंधररास (सं. 1606), विनयसमुद्र का चित्रसेन पद्मावतीरास (सं. 1605), रायमल्ल का प्रद्युम्नरास (सं. 1668), पांडे जिनदास का योगीरासा (सं. 1660), हीरकलश का सम्यक्त्व कौमुदीरास (सं. 1626), भगवतीदास (सं. 1662) के जोमीरासा आदि, सहमकीर्ति के शीलरासावि (सं. 1686) भाऊ का नेमिना रास (सं. 1759), चेतनषिजय का पालरास जैन रासा अन्धों में उल्लेखनीय है । इन रासा ग्रन्थों में श्रृंगार, वीर, शान्त और भक्ति रस का प्रवाह दिखाई देता है। प्रायः सभी रासों का अन्त शान्तरस से रंजित है। फिर भीम पौर विरह के चित्रों की कमी नहीं है । इस सन्दर्भ में 'पञ्चना सुन्दरी रास' सल्लेख्य है जिसमें राजना के विरह का सुन्दर चित्रण किया गया है। इस सन्दर्भ में वन्सत का वित्रण देखिए, कितना मनोहारी है मधुकर करई गुंजारव मार विकार वहति । कोयल करइ पटहूकड़ा टूकड़ा मेलवा कन्त ।। मलयापल थी लकिरा पुलकिउ पवन प्रचण्ड । मदन महानष पाझह विरहीनि सिर दण्ड ।
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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