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________________ hi मार्ग दर्शाया गया है । उनमें चित्रित पात्रों के भाव चरित्र, प्रकृति और वृति को स्पष्ट करने में ये कथा काव्य अधिक सक्षम दिखाई देते हैं। ऐसे ही कथा काव्यों में ब्रह्मजिनदास (वि. सं. 1520) की रविव्रत कथा, विद्याधर कथा सम्यक्त्वकथा मादि, fareera की निर्जरपंचमी कथा (सं. 1576), ठकुरसी की मेघमालाव्रत कथा (सं. 1580), देवकलश की ऋषिदत्ता (सं. 1569), रायमल्ल की भविष्यदत्तकया (सं. 1633), वादिचन्द्र की अम्बिकाकथा (सं. 1651 ), छीतर ठोलिया की होलिकाकथा (सं. 1660), ब्रह्मगुलाल की कृपरण जगावनद्वार कथा (सं. 1671), भगवतीदास की सुगन्धदसमी कथा, पांडे हेमराज की रोहणी व्रत कथा, महीचन्द की शादित्यव्रत कथा, टीकम की चन्द्रस कथा ( सं 1708), जोधराज गोदीका का कथाकोश (सं. 1722), विनोदीलाल की भक्तामर स्तोत्र कथा (सं. 1747), किशनसिंह की रात्रिभोजन कथा (सं. 1773), टेकचन्द्र का पुण्याश्रवकथाकोश (स. 1822), जगतराम की सम्यक्त्व कौमुदी ( सं 1721) उल्लेखनीय हैं । ये कथा काव्य कवियों की रचना कौशल्य के उदाहरण कहे जा सकते हैं। 'सम्यक्त्व कौमुदी' की कथाओ में निबद्ध काव्य वैशिष्ट्य उल्लेख्य है तबहि पावड़ी देखि चोर भूपति निज जान्यो । देखि मुद्रिका चोर तबै मन्त्री पहिचान्यौ ॥ सूत जनेऊ देखि चोर प्रोहित है भारी । पंचनि लखि विरतान्त यहै मन मे जु विचारी ॥ भूपति यह मन्त्री सहित प्रोहित युत काढी दयो । इह भांति न्याव करि भलिय विधि धर्म यापि जग जसलयौ ॥ इस प्रकार का काव्य वैशिष्ट्य मध्यकालीन हिन्दी जैन कथा काव्यों में अन्यत्र भी देखा जा सकता है। इसके साथ ही यहाँ जैन सिद्धान्तों का निरूपरत कवियों का विशेष लक्ष्य रहा है । 4. रासा साहित्य हिन्दी जैन कवियों ने रासा साहित्य के क्षेत्र में अपना अमूल्य योगदान दिया है । सर्वेक्षण करने से स्पष्ट है कि रासा साहित्य को जन्म देने वाले जैन कवि ही थे । जन्म से लेकर विकास तक जैनाचार्यों ने रासा साहित्य का सृजन किया है । यता का सम्बन्ध रास, रासा, रासु, रासो मादि शब्दों से रहा है जो 'रासक' शब्द के ही परिवर्तित और विकसित रूप है । 'रासक' का सम्बन्ध नृत्य, छन्द भथवा काव्य विशेष से है । यह साहित्य गीत-नृत्य परक और छन्द वैविध्य परक मिलता हैं । जैन कवियों ने गीत-नृत्य परक परम्परा को अधिक अपनाया है । इनमें कवियों ने धर्म प्रचार को विशेष महत्व दिया है। इस सन्दर्भ में शालिभद्रसूरि का पांच पाण्डव रास
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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