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________________ इसी प्रकार कृपण चरित्र में कवि ठकुरसी ने कम्जस घनी का जो माखों देखा हाल चित्रित किया है वह दुष्टव्य है- कृपणु एक परसिद्ध नर्यारि निवसतु निलक्वणु । कही करम संयोग तासु घटि, नाटि विचक्खणु ॥ देखि दुहू की जोड़, सथलु जगि रहिउ तमासं । याहि पुरिष के याहि, दई किम दे इम भासं ॥ वह रह्यौ रीति चाहे भली, दारण पुज्ज गुणसील सति । यह दे न खाण खरचरण किवं, दुवै करहि दिरिण कलह प्रति ।। afa हीरालाल द्वारा रचित चन्द्रप्रभचरित काव्य चमत्कार की दृष्टि से प्रति मनोहर है । इस सन्दर्भ में निम्न पथ दर्शनीय है कवल बिना जल, जल बिन सरवर, सरवर बिन पुर, पुर बिन राय | राय सचिव बिन, सचिव बिना बुध, बुध विवेक बिन बिन शोभ न पाय ॥ इसी प्रकार नवलशाह विरचित वर्द्धमान चरित्र में अंकित महारानी प्रिय कारिणी के रूप सौन्दर्य का चित्रण (नख शिख वरन ) जनेतर कवियों से हीन नहीं है । नखन्त भयौ भय भयौ दशहू दिश अम्बुज सौं जुग पाय बेने, नख देख नूपुस की झनकार सुनै, दृग शीरर कंदल थंभ बनं जुग जंग, सुचाल चलें गज की पिय क्षीन बनो कटि केहरि सौ, तन दामिनी होय रही लज नाभि निबौरियसी निकसी, पढ़हावत पेट संकुचन धारी । काम कपिच्छ कियौ पट रन्तर, शील सुधीर घरं प्रविकारी ॥ भूषण बारह भौतिन के अन्त, कण्ठ मे ज्योरित लस अधिकारी । देखत सूरज चन्द्र छिपे, मुख दाडिम दंद महाद्यविकारी || सारी ॥ भारी । भारी । प्यारी । इस प्रकार मध्यकालीन हिन्दी जैन चरित काव्य भाव, भाषा और अभिव्यक्ति की दृष्टि से उच्च कोटि के है । वस्तु और उद्देश्य बड्री सूक्ष्मता से समाहित है । पात्रों के व्यक्तित्व को उभारने मे जैन सिद्धान्तो का अवलम्बन जिस ढंग से किया गया है वह प्रशंसनीय है । सांसारिक विषमताओं का स्पष्टीकरण और लोकरंजनकारी तत्वों की अभिव्यंजना जैन साधक कवियों की लेखनी की विशेषता है। प्राचीन काव्यों में चरितार्थक पवीड़ो काव्य भी उपलब्ध होते हैं । इसी सन्दर्भ में भगवतीदास के वृहद सीता सतु श्रौर लघु सीता सतु जैसे सत सज्ञक काव्य भी उल्लेखनीय हैं । 3. कथा काव्य : मध्यकालीन हिन्दी जैन कथा काव्य विशेष रूप से व्रत, भक्ति और स्तवन के महत्व की अभिव्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किये गये हैं। वहां इन कथाओं के माध्यम से विषय कषायों की निवृत्ति, भौतिक सुखों की अपेक्षा तथा शाश्वत सुख की प्राप्ति
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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