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________________ 231 कर सकें 12 भक्ति-धर्म में सूर ने गुरु की आवश्यकता अनिवार्य बतलाई है और उसका उच्च स्थान माना है । सद्गुरु का उपदेश ही हृदय में धारण करना चाहिए क्योंकि वह सकल भ्रम का नाशक होता है "सद्गुरु को उपदेश हृदय घरि, जिन भ्रम सकल निवारयो ||2 सूर गुरु महिमा का प्रतिपादन करते हुए करते हैं कि हरि श्रौर गुरु एक ही स्वरूप है और गुरु के प्रसन्न होने से हरि प्रसन्न होते हैं। गुरु के बिना सच्ची कृपा करने वाला कौन है ? गुरु भवसागर में डूबते हुए को बचाने वाला और सत्पथ का दीपक है । 3 सहजोबाई भी कबीर के समान गुरु को भगवान से भी बड़ा मानती हैं 14 दादू लोकिक गुरु को उपलक्ष्य मात्र मानकर असली गुरु भगवान को मानते हैं । नानक भी कबीर के समान गुरु की ही बलिहारी मानते है जिसने ईश्वर को दिखा दिया अन्यथा गोविन्द का मिलना कठिन था । सुन्दरदास भी "गुरुदेव बिना नही मारग सूझय" कहकर इसी तथ्य को प्रकट करते हैं ।" तुलसी ने भी मोह भ्रम दूर होने और राम के रहस्य को प्राप्त करने में गुरु को ही कारण माना है। रामचरितमानस के प्रारम्भ मे ही गुरु वन्दना करके उसे मनुष्य के रूप में करुणासिन्धु भगवान माना है । गुरु का उपदेश अज्ञान के अंधकार को दूर करने के लिए अनेक सूर्यो के समान है 1. 6. 2. 3. सूरसागर, पद 416, 417; सूर और उनका साहित्य, 4. परमेसुर से गुरु बड़े गावत वेद पुरान - संतसुधासार, पृ. 182 5. प्राचार्य क्षितिमोहन सेन-दादू और उनकी धर्मसाधना, पाटल सन्त विशेषांक, 7. बंदऊ गुरुपद कंज कृपा सिन्धु नररूप हरि । महामोह तम पुंज जासु वचन रवि कर निकर ॥ 8. जोग विधि मधुबन सिखिहैं जाइ । बिनु गुरु निकट सदेसनि कैसे, अवगाह्यौ जाइ । सूरसागर (सभा), पद 4328 वही, पद 336. भाग 1, पृ. 112. बलिहारी गुरु प्राणों द्यी हांड़ी के बार। जिनि मानिषतें देवता करत न लागी बार ॥ गुरु ग्रंथ साहिब, म 1, प्रासादीवार, पृ. 1 सुन्दरदास ग्रंथावली, प्रथम खण्ड, पृ. 8 रामचरितमानस, बालकाण्ड 1-5
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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