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________________ १८ शुद्ध करके फिर चिन्तवन किया । जिससे कि उन देवियोंने केयूर ( भुजापर पहरनेका आभरण ) हार, नूपुर ( बिछुए ), कटक ( कंकण ) और कटिसूत्र ( करधनी ) से सुसज्जित दिव्यरूप वारण करके दर्शन दिया और समक्ष उपस्थित होकर कहा कि, कहिये - किस कार्य के लिये हमको आज्ञा होती है " यह सुनकर मुनियोंने कहा कि हमारा ऐहिक पारलौकिक ऐसा कोई भी कार्य नहीं है जिसे तुम सिद्ध कर सको। हमने तो केवल गुरु देवकी आज्ञा से मंत्रोंकी सिद्धि की है । मुनियोंका अभीष्ट सुनकर वे देवियां उसी समय अपने स्थानको चली गई । (6 इसप्रकार से विद्यासाघन करके संतुष्ट होकर उन दोनों मुनियोंने गुरुदेव के समीप जाकर अपना सारा वृत्तान्त निवेदन किया उसे सुनकर श्रीधरसेनाचार्यने उन्हें अतिशय योग्य समझकर शुभ तिथि, शुभनक्षत्र और शुभ समय में ग्रन्थका व्याख्यान करना प्रारंभ कर दिया और वे मुनि भी आलस्य छोड़कर गुरुविनय तथा ज्ञानविनयकी पालना करते हुए अध्ययन करने लगे । कुछ दिन के पश्चात् आषाढ शुक्ला १९ को विधिपूर्वक ग्रन्थ समाप्त हुआ | उसदिन देवोंने प्रसन्न होकर प्रथम मुनिकी दंतपंक्तिको - जो कि विषमरूप थी, कुन्दके पुष्पोंसरीखी कर दी । और उनका पुष्पदन्त ऐसा सार्थक नाम रख दिया । इसी प्रकारसे भूत जातिके देवोंने द्वितीय मुनिकी तूर्यनाद - जयघोष तथा गन्धमाल्य धूपादिकसे पूजा करके उनका भी सार्थक नाम भूतपति रख दिया । दूसरे दिन गुरुने यह सोचकर कि, मेरी मृत्यु सन्निकट है, यदि ये समीप रहेंगे, तो दुःखी होंगे, उन दोनोंको कुरीश्वर भेज
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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