SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दिया । तब वे ९दिन चलकर उस नगरमें पहुंच गये। वहां आषाढ कृष्ण ५ को योग ग्रहण करके उन्होंने वर्षाकाल समाप्त किया। और पश्चात् दक्षिणकी ओरको विहार किया। कुछ दिनके पश्चात् वे दोनों महान्मा करहाट नगरमें पहुंचे । वहां श्रीपुष्पदन्त मुनिने अपने जिनपालित नामक भानजेको देखा और उसे जिनदीक्षा देकर वे अपने साथ ले वनवास देशमें जा पहुंचे । इधर भूतबलि द्रविडदेशके मथुरा नगरमें पहुंचकर ठहर गये । करहाट नगरसे उक्त दोनों मुनियों का साथ छूट गया । श्रीपुष्पदन्त मुनिने जिमपालितको पढानेके लिये विचार किया कि, कर्मप्रकृति प्राभृतकी छहखंडोंमें उपसंहार करके ग्रन्थरूप रचना करनी चाहिये और इसलिये उन्होंने प्रथम ही जीवस्थानाधिकारकी जिसमें कि गुणस्थान, जीवसमासादि बीस प्ररूपणाओंका वर्णन है, बहुत उत्तमताके साथ रचना की। फिर उस शिप्यको सौ सूत्र पढ़ाकर श्रीभूतबलिमुनिके पास उनका अभिप्राय ज्ञान करनेके लिये अर्थात् यह जाननेके लिये कि वे इस कार्यके करनेमें सहमत हैं, अथवा नहीं हैं, और हैं तो जिसरूपमें रचना हुई है. उसके विषयमें क्या सम्मति देते है, भेज दिया । उसने भूतबलि महपिके समीप जाकर वे प्ररूपणासूत्र सुना दिये। जिन्हें सुनकर उन्होंने श्रीपुष्पदन्त मुनिका षट्खंडरूप आगमरचनाका अभिप्राय जानलिया और अब लोग दिनपर दिन अल्पायु और अल्पमति होते जाते हैं, ऐसा विचार करके उन्होंने स्वयं पांच खंडोंमें पूर्व सूत्रोंके सहित छह हजार श्लोकावीशष्ट द्रव्यप्ररूपणाद्यधिकारकी १ दक्षिण देशमें पहिले शुक्ल पक्ष पाछे कृष्ण पक्ष आता है।
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy