SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 350
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२२) ॐ द्रव्यसंग्रह । मूलगाथा, संस्कृत छाया, हिन्दी मराटी अन्वयार्थ और पास होनेकी कुंजी सहित दूसरी बार निर्णयमागरमं बहुत शुद्धनास माट कागजपर छपाया गया है। पहली बार प्रत्यक गाथाकी संस्कृत अया नही थी, वह अबकी बार लगा दी गई है । चतुर विद्यार्थी इसे विना गुरुके भी पढ सकता है. और परीक्षा देकर पास हा मकता है । मूल्य पहिले आठ आना था. अब छह आना कर दिया गया है। तत्त्वार्थसूत्रकी बालबाधिनी भाषाटीका । तत्त्वार्थमूत्र हम लोगोंका परम पूज्य ग्रन्थ है । इसे प्रत्येक जैनी पढना पढाना अपना परम धर्म समझते । इमक एक बार के पाट मात्र एक उपवामका फल होता है । यह ग्रन्थ जैमा उपयोगी है और जैनधर्मके पदार्थोका अटूट समुद्र जिस प्रकार इसमें भरकर गागरम मागरकी कहावत सिद्ध की गई है. उनके कनकी जरूरत नहीं है । इसकी प्रशंसा प्रगट करने के लिये इम अन्नघर जो अनक टीकायें बनाई गई है. वही बन है । परन्तु बंद कि.. अभी तक. इसकी कोई ऐसी टीका पाकर प्रकाशित नहीं ई. पढनेवाले, विद्यार्थियोंकी ममझमें आ सके । अभी तक, जो टीकामें छपी है. वे विशेष ज्ञातियों के ममझने योग्य है . बारकाके लिये जिम क्रमम होनी चाहिये उस क्रममें नहीं है । इन अभावको पातकं लिय हमने यह भाषाटीका तैयार की है यह टीका भादाम वाचनके लिये भी बड़े कामकी है । सधारण भाई भी दमक मृतका अय वाचकर समझ मकते है । रत्नकरंडक समान इसमें नी एट पदका अर्थ किया गया है और भावार्थ व विशेष वानं तथा टीकाय लिन्नी गई है । इसको एक बार पढ लेनक फिर मामाद्ध आदि बड़ी टीकाओंके पढनमें गति हो जावेगी । यह टीका विद्या
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy