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________________ (२३) थियोंके बड़े ही कामकी है । इसे विना गुरुके पढकर भी विद्यार्थी बडी मुग्मताके परीक्षा दे करना है। जहां तक बना है, प्रत्येक पदार्थ के लक्षण व स्वरूप इसमें संक्षेपतासे लिंग्व गये है । मूल्य मात्र १२ आने ग्वा गया है। पाठशालाओंके प्रबंधकर्ताओंका नमूनेके लिये इसकी एक एक प्रति जरूर मंगानी चाहिये थोडीमी प्रतियं रह गई है। ॐ भक्तामरस्तोत्र । अन्वय हिन्दी अर्थ, भावार्थ और कविधर भाई नाथूराम प्रेमीकृत नवीन भाषानुवाद माहित । जैनीके बालकके लेकर टेनक सब ही महामरम्नोत्रका पाट करते है। इसका पाट करना आनंददायक है । ग्बद है कि. अर्थ न मम. झनम हमारे यहुनन्न जना भाइ इम म्तात्रकी अर्थगर्भाग्ता और भनिगमक आबादम बचित रहत है उनके लिये हमने यह नवीन टीका तयार करवाई है । इसमें रत्नकरडक ममान पहिले प्रत्येक श्लाकका अगवानुगत पढायलम्बकर फिर प्रत्यकका भावाथ लिग्वा है । पश्चात हानिका आर नंन्द्र छन्दमें उसकी मुन्दर कविता बनाई गई है। जिम मूलका कोट भी भाव नही छोडा है । टिप्पामं अनेक प्रतियोले इस करके पाठान्तर और कठिन गब्दोंक अर्थदिय है। इस तरह यह पुस्तक माग सुन्दर नैयार हुई है। अभीतर एमां कोई भी टीका नहीं छपी थी। पाटगालाओं के विद्या थियों के लिये यह बड़े काम चीज है । भामिका श्रीमानतुंगमरिका १० - १२ गजका जीवनचरित्र है । बाती बातमें इसकी १००० कापी छह महीन विक गई। दृमबार संशाधिन और परिवार्द्धत करके छपाया ह । मूल्य निफ ।)
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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