SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 348
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२०) अथात् पंडिताई । १६ प्रश्न-(विवेकिता का ) विचारशीलता क्या है। उत्तर-( व्रताचरणं ) व्रतोंका आचरण करना, पालन करना ॥६॥ मनसापि किं न चिन्त्यं परदाराः परधनं परापकृतिः। कीदृग्वचो न वाच्यं परुषं पीडाकरं कटुकम् ॥ ७ ॥ १७ प्रश्न- मनसापि किं न चिन्त्यम् । मनमे भी किमका चिन्नवन नहीं करना चाहिये । उत्तर । परदागः परधन पराप कति । दूसरी स्त्रीका, दृस के धनका और दुसरेक अपकारका । १८ प्रश्न ( कीदृग्वचो न वाच्यम् , केमा वचन नहीं बोलना चाहिय । उत्तर परुपं पीडाकरं कदम जो कठोर पाहा करनेवाला और कडुवा हो ।। ७ ।। किं हातव्यं मत पेशन्यं व्यनिता च मात्मय॑म् । किमकरणीयं यत्पर लोकविरुद्धं मनोनिष्टम् ॥ ८॥ प्रश्न- । किं हातव्यं मननम् . मटा त्याग करने योग्य क्या है । उत्तर - ( पैशुन्यं व्यसनिना च मात्मयम , चुगली करना. मप्तव्यसन और दूसरी बढी न महना । २० प्रश्न किमकर णीयम , न करने योग्य क्या है । उत्तर ( यत्सरलोकविरुद्ध मनोनिष्टम् । जो परलोकमे विरुद्ध और मनको अनिष्ट हो ॥ ८ ॥
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy