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________________ (१९.) एकता । २. ( कियत्मुग्वं नत्र च ) और उस मोक्षमें सुख किनना है । उनर - ( अनन्ता ) अनन्न ।। ४ ।। किं हिंमाया मूलं कोपः कात्मान्यवञ्चिका माया । कोत्रगुरुष्वपि पूजा तिक्रमहेतुः खलो मानः ॥ ५ ॥ १० प्रश्न : कि हिंमाया मूलम् . हिंमाका मूल । कारण ) क्या है । उत्तर कोपः क्रोध । 2 प्रश्न कात्मान्यवाञ्चिका आपको और रसगंको ठगने वाली कौन है । उनर माया) माया अर्थान कपट हर ! १२ प्रश्न कात्र गुमध्वपि पूजातिक्रमहेनुः । गुरुजनोंके साकारता उलयन करनेवाला कौन है । उनर--स्खलो मानः : दुष्टमान अर्थात अहंकार ।' , किमनर्थम्य निदानं लोभः किं मण्डनं च शुचि शीलम् । को महिमा विद्वत्ता विवेकिता का व्रताचरणम् ॥ ६ ॥ १३ प्रश्न । किमनर्थस्य निदानम् । अनर्थका कारण क्या है पर । लामः । लोभ लालच । १४ प्रश्न: कि मण्डनं च ) और माइन अथात भूषण क्या है! (उचः शुचिशीलम् ) पवित्र ब्रह्मचर्य। १.५ प्रभ' को महिमा ) महिमा क्या है। उत्तर विद्वता ) विद्वत्ता
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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