SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 346
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१८) गुरु कौन है । उत्तर-(अविषयत्तिर्निग्रन्यः स्वस्वरूपस्यः) जिसकी प्रवृत्ति विषयोंमें नहीं है तथा जो परिग्रहहित और अपने आत्मस्वरूपमें स्थिर रहता है ॥२॥ किं दुर्लभं नृजन्म प्राप्यदं भवति किं च कर्त्तव्यम् । आत्महितमहितमंग त्यागो रागश्च गुरुवचने ॥ ३ ॥ , प्रश्न - कि दल मम । दुर्लभ क्या है। उत्तर । नृजन्म : मनुष्य जन्म । ६ प्रश्न प्राप्यदं भवति किं च कत्तव्यम ) दृम मनु प्य जन्मको पाकर क्या करना चाहिय । उत्तर-- आत्महितमाहित महत्यागा रागश्च गुरुवचन । आन्माका हित, अहितमा परिन हका त्याग और गुम्वचनामें प्रेम करना चाहिये ।। ३ ।। का मुक्तिरविलकर्म क्षतिरम्याः प्रापकश्च को मार्गः । दृष्टिर्जानं वृनं कियत्मुखं तत्र चानन्तम ॥ ४ ॥ ७ प्रदन ( का मुक्तिः ) मोक्ष क्या है । उत्तर - ( मखिलकर्य भतिः ) समस्त कर्मोका नाश होना । ८ प्रश्न ( मस्याः प्रापकच को मार्गः । उसके ( मोक्षकं । प्राम करनेका मार्ग कौन है । उत्तर ५ अष्टिानं वृत्तम् ) सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्रकी
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy