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________________ अपरा प्रश्नोत्तररत्नमालिका। आया । किमिहाराध्यं भगवन् रत्नत्रयतेजमा प्रतपमानम् शुद्धं निजात्मतत्त्वं जिनरूपं मिद्धचक्रं च ॥१॥ १. प्रश्न (किमिहागध्यं भगवन् । हे भगवन संमाग्में आगधन करने योग्य कौन है । उत्तर । रत्नत्रयतेजमा प्रतपमान शुद्धं निजात्मतत्वं जिनरूप मिचक्र च । ग्नत्रयके नेजस देदीप्यमान अपना शुद्धात्मतत्त्व. जिनेन्द्रका म्वरुप और सिद्धोंका समूह ॥ १ ॥ को दवा निम्खिलज्ञो निर्दोषः किं श्रुतं तदुद्दिष्टम् । को गुरुरविषयवृत्ति निग्रन्थः स्वम्वरूपस्थः ॥ २ ॥ २ प्रश्न - ( का दवः । देव कौन है । उत्तर निखिलझोनिदोषः । जो अठारह प्रकारक दोषाम रहित और सम्पूर्ण पदार्थोंका जानन वाला है । ३ प्रश्न- किं श्रुतम्) शास्त्र कौन है। उत्तर-( तदुरिष्टम् ) जो उक्त निदोष सर्वज्ञदवका कहा हुआ है । ४ प्रश्न-( का गुरुः )
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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