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________________ ( १.३ ) किं शौच्यं कार्पण्यं सति विभवे किं प्रशस्यमौदार्यम् । तनुतरवित्तस्य तथा प्रभविष्णोर्यत्सहिष्णुत्वम् ॥ २५ ॥ ६१ प्रश्न - ( किं शौच्यं) खेद करने योग्य क्या है। उत्तर- (कार्पण्य) कृपणता कंजूसी । ६२ प्रश्न- ( - (सति विभवे किं प्रशस्यम् ) विभूतिके होते हुए प्रशंसा करनेयोग्य क्या है। उत्तर- (औदार्यम्) उदारता । ६३ प्रश्न - ( तनुतरवित्तस्य किं प्रशस्यम् ) और जो अत्यंत धनहीन है उसका क्या प्रशंसनीय है। उत्तर- (तथा) वही उदारता । ६४ प्रश्न- ( प्रभविष्णोः किं प्रशस्यं) बलवान् पुरुषोंका क्या प्रशंसनीय है। उत्तर-- ( यत्सहिष्णुत्वं ) सहनशीलता- -क्षमा ॥२५॥ चिंतामणिरिव दुर्लभमिह किं ननु कथयामि चतुर्भद्रम् । किं तददन्ति भूयो विधूततमसो विशेषेण || २६ || + ६५ प्रश्न (चिंतामणिरिव दुर्लभमिह किम् ) संसारमें चिन्तामणिके समान दुर्लभ क्या है। उत्तर- ( ननु कथयामि चतुर्भद्रम् ) मैं निश्व यसे कहता हूं कि चार भद्र ही अतिशय दुर्लभ है । ६६ प्रश्न - (कि तद्वदन्ति भूयो विधूततमसो विशेषेण ) जिनका अज्ञान अंधकार नष्ट हो गया है ऐसे महापुरुष उन चार भद्रोंका स्वरूप विशेष रूपमे 'सप्रकार कहते हैं ॥ २६ ॥
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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