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________________ ( ४ ) ( बहुशोऽपि विचिन्त्यमाना मैदमेव मनुजेषु त्वं स्वपरहिताबोधतं जन्म ) मनुष्ययोनिमें ऐसा जन्म लेना कि, जिसमें - सम्पूर्ण तस्वोंको देखा और पढ़ा हो तथा जो अपने और दूसरोंके हितमें सदा उद्यत हो यही सार है सो बहुत बार विचार कर आचार्योंने निश्चय कर कहा है ॥ ६ ॥ मदिरेव मोहजनकः कः स्नेहः के च दस्यवो विषयाः । का भववल्ली तृष्णा को वैरी नन्वनुद्योगः ॥ ७ ॥ ११ प्रश्न - ( मदिरेव मोहजनकः कः ) मदिराके समान मोहको उत्पन्न करनेवाला कौन है । उत्तर - ( स्नेहः ) स्नेह-प्रेम वा मोह । १२ प्रश्न - ( के च दस्यवः) इसजीवके रत्नत्रयोंका चौर कौन है । उत्तर- ( विषयाः ) इन्द्रियोंके विषय हैं । १३ प्रश्न- (का भगवती ) संसारके बढानेवाली बेल कौन है। उत्तर- (तृष्णा) योगोंकी आशा । १४ प्रश्न- ( को बैरी) जीवका शत्रु कौन है। उत्तर- ( नन्वनुद्योगः ) उद्योग न करना ही निश्वमसे इस जीवका बैरी है ॥ ७ ॥ कस्माद्भयमिह मरणादन्धादपि को विशिष्यते रागी । कः शूरो यो ललना लोचनबाणैर्न च व्यथितः ॥ ८ ॥
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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