SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 331
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३ ) दोनों सहभावी हैं । बिना सम्यग्दर्शनके सम्यग्ज्ञान नहिं हो सक्ता इसलिये सम्यग्नानके कहनेसे सम्यग्दर्शनको भी सूचितकर दिया अतः सम्यग्दर्शन, समज्ञान, और सम्यक्चारित्र ये तीनों मिलकर मोक्षतपी वृक्षक बीज हैं ॥ ४ ॥ किं पथ्यदनं धर्मः कः शुचिरिह यस्य मानसं शुद्धम् । कः पण्डितो विवेकी किं विषमवधीरिता गुरवः ॥ ५ ॥ ६ प्रश्न--पथिअदनं किं ) पग्लोककी यात्रा करनेवाले जीवोंको मार्गके लिये पाथेय ( कलेवा ) क्या है ? उत्तर-(धर्मः ) एकधर्म । ७ प्रश्न ( कः शुचिः इह ) इस संसारमें शुद्ध कौन है ? उत्तर-- ( यस्य मानसं शुद्धम् ) जिसका चित्त शुद्ध है । ८ प्रश्न-(क: पण्डितः ) पण्डित कौन है । उत्तर--(विवेकी) जिसको हित अहितका विवेक है । ९ प्रश्न (किं विषमं ) विष क्या है । उत्तर( अवधरिता गुरकः) तिरस्कार किये हुए गुरु अर्थात् गुरुओंका तिरस्कार करना सो विष है ।। ५॥ . किं संसारे सारं बहुशोपि विचिन्त्यमानमिदमेव । मनुजेषु दृष्टतत्वं खपरहितायोद्यतं जन्म ॥ ६॥ १. प्रा-(कि संसारे सारं ) इस संसारमें सार क्या है। उत्तर
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy