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________________ (२) व: भगवन् किमुपादेयम् ___ गुरुवचनं हेयमपि च किमकार्यम् । को गुरुरधिगतत्त्वः सत्वहिताभ्युद्यतः सततम् ॥ ३॥ १ प्रभ-( भगवन् उपादेयं किम्- ) हे भगवन् उपादेव ( ग्रहण करनेयोग्य ) क्या है ? उत्तर-(गुरुवचनम् ) गुरुके वचन। २ प्रश्न-हेयमपिच किम्-) और हे अर्थात् त्याग करने योग्य क्या है ? उत्तर-(अकार्यम्-) अकार्य (निन्द्यकार्य) ।३ प्रश्न-(को गुरु:) गुरु कौन है । उत्तर-(अधिगततत्त्वः सत्वहिताभ्युद्यतः सततम) जो निरन्तर ही प्राणियों के हित करनेमें उधत हो और जो सम्पूर्ण तत्त्वोंका यथार्थ ज्ञाता हो ॥ ३ ॥ त्वरितं किं कर्तव्यं विदुषा संमारसंततिच्छेदः। किं मोक्षतरो/जं सम्यग्ज्ञानं क्रियासहितम् ॥ ४ ॥ ४ प्रश्न-विदुपा त्वरितं कि कर्तव्यं) विद्वान् पुरुषोंको कौनमा कार्य शीघ्र ही करना चाहिये । उत्तर--( संसारसन्नतिच्छेदः । संसारपरंपगका छेद अर्थात् जन्ममरणरूपी परिभ्रमणका नाश शीघ्र ही करना उचित है । ५ प्रश्न-(मोक्षतरोः बीजं किं) मोक्षरूपी वृक्षका बीज ( कारण ) क्या है ? उत्तर-(क्रियासहितं सम्यासानं) सम्यकचारितसहित सम्यम्झान है। सम्यग्दर्शन और सम्यमान
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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