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________________ Pertenkontorettotetor te tretetrtrtrtrtrtateetateetartetetatatatatet बनारसीविलासः ३९ trkut.kut.tter चैतन्यं विषसंनिधेरिव नृणामुजासयत्यासा ॐ धर्मस्थाननियोजनेन गुणिभिमा॑ह्यं तदस्याः फलम् ७६ नीचहीकी ओरकों उमंग चलै कमला सो; पिता सिंधु सलिलखभाव याहि दियो है । रहै न सुथिर हे सकंटक चरन याको; ___ वसी कंजमाहिं कंजकैसो पद किया है ॥ जाको मिलै हितसों अचेत कर डारे ताहि; ___ विपकी बहन तातै विपकैसो हियो है। मी ठगहारी जिन धरमक पंथडारी; ____ करके सुकृति तिन याको फल लियो है ।। ७६ ॥ दानाधिकार. चारित्रं चिनुते तनोति विनयं ज्ञानं नयत्युननि __ पुष्णाति प्रशमं तपः प्रबलयत्युल्लासयत्यागमम् । पुण्यं कन्दलयत्यघं दलयति स्वर्ग ददाति ऋभानिर्वाणश्रियमातनोति निहितं पात्रे पवित्रे धनम् ७७ ३१ मात्रा सवैया छंद । चरन अखंड ज्ञान अति उज्जल; विनय विवेक प्रशम अमलान ।। * अनघ मुभाव मुकृति गुन संचय; उच्च अमरपद बंध विधान आगमगम्य रम्य तपकी रुचि; उद्धत मुकति पंथ सोपान । - ये गुण प्रघट होंय तिनके घट; जे नर देहिं सुपत्तहिं दान७७ * ༼**སྨ-།***དཱི༼མདཱི**''' མ****༼རྩོམ་ ....................tattatuut.tot.t ttttttttttt.ttst.tattsekxtutakirinkutrkst.ttt.t.titutu.tutattituttitute stotukaturette...xstot.kesat.toxt-7
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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